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Sunday, January 29, 2012

(135) नियम परिवर्तन प्रकृति का /

नियम परिवर्तन प्रकृति का , दिवस पीछे रात भी है /
और  हर  काली  निशा  के  बाद  आता  प्रात  भी  है /
जो न  भय खाते निशा से , और सहते  धैर्य से तम ,
फिर समय उनके लिए , लाता प्रभामय प्रात भी है /

कष्ट मिट्टी पर लिखो , उपकार लिख डालो शिला पर ,
चूमना आकाश है तो , विजय  लिख दो  हर दिशा पर ,
स्वर्ण में भी  दीप्ति  आती ,  ताप  का  संताप सहकर ,
और तन  पर  झेलता  वह , तीव्रतम  आघात भी है /

है वही  जीवन  कि  जिसमें ,  कंटकों से  पूर्ण  पथ हो ,
है वही जीवन कि जिसमें , प्रथम इति पश्चात अथ हो ,
चक्र जीवन  का  निरंतर  ,  एक सा किसका  चला है ?
विजयश्री मिलती जिसे , मिलती  उसे ही  मात भी है /

वही है  सबसे दुखी , जिसने  कभी  भी  दुःख  न देखा ,
जो झरा वह फिर फरा भी , सृष्टि का यह अमिट लेखा ,
बाद पतझड़  कोपलों से , सँवरती  फिर तरु - लताएँ ,
फिर  वसंती  पवन देता  ,  उन्हें  नूतन  पात  भी  है /

नियम परिवर्तन प्रकृति का , दिवस पीछे रात भी है /
                                             - एस.एन.शुक्ल 

35 comments:

vidya said...

बहुत सुन्दर...
प्रकृति के सभी नियम सर माथे पर..

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

जीवन रहस्य को व्याख्यायित करती एक कविता!!

प्रवीण पाण्डेय said...

कष्ट मिट्टी पर लिखो...अद्भुत सोच...

shikha varshney said...

कष्ट मिटटी पर लिखो,उपकार लिख डालो शिला पर..
अद्भुत ...

मनोज कुमार said...

इस कविता को पढ़कर एक भावनात्मक राहत मिलती है।

S.N SHUKLA said...

VIDYA JI,
SALIL VERMA JI,

आपकी शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Pravin pandey ji,
Shikha varshney ji,

आपका स्नेह मिला, सार्थक हुयी रचना, आभार.

S.N SHUKLA said...

Manoj ji,

आभार आपके समर्थन का.

Aditya said...

Prernadaai kavita sir..
Harivansh rai bachchan ji ki kavitaao ka smaran karaati hui panktiya..
Bahut sundar rachna :)

***Punam*** said...

है वही जीवन कि जिसमें,कंटकों से पूर्ण पथ हो,
है वही जीवन कि जिसमें,प्रथम इति पश्चात अथ हो

बहुत सुन्दर..
सीतापुर की यादें ताज़ा हो गयीं !
लिखने का अंदाज़ जाना-पहचाना सा....

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर एवं सार्थक सार्थक प्रस्तुति ।
welcome to my new post on Taslima Nasarin.
धन्यवाद ।

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut khoob.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।

SACCHAI said...

lajawab ...adbhut rachana

Anonymous said...

bahut sundar abhivyakti hai shukla ji...

Sikta said...

परिवर्तन ही शाश्वत सत्य

नीरज गोस्वामी said...

शुक्ल जी

बेहतरीन रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें

नीरज

S.N SHUKLA said...

Aditya ji,
Poonam ji,

आभारी हूँ आपके स्नेहिल समर्थन का.

S.N SHUKLA said...

PREM JI,
NISHA JI,

आभारी हूँ आप मित्रों के उत्साहवर्धन का.

S.N SHUKLA said...

BALI JI,
PATEL JI,
UJALESH JI,

आपके समर्थन से सार्थक हुयी रचना, धन्यवाद.

S.N SHUKLA said...

Sikta ji,
Neeraj Goswami ji,

आप मित्रों से हमेशा इसी उत्साहवर्धन की अपेक्षा रही है, आभार.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

adbhut... khubsurat.. prakriti ke niyamo ko kavita me dikha diya:)

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

bilkul sahi ........prakriti ka shashvat niyam hai ye.....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

basant ki shubhkamnayen sir.....

Rajesh Kumari said...

है वही जीवन कि जिसमें , कंटकों से पूर्ण पथ हो ,
है वही जीवन कि जिसमें , प्रथम इति पश्चात अथ हो ,
चक्र जीवन का निरंतर , एक सा किसका चला है ?
विजयश्री मिलती जिसे , मिलती उसे ही मात भी है /
atisundar ek sashakt,behtreen rachna.

ऋता शेखर 'मधु' said...

कष्ट मिट्टी पर लिखो , उपकार लिख डालो शिला पर ,
अद्भुत अभिव्यक्ति...
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार|

शूरवीर रावत said...

परिवर्तन शाश्वत सत्य है. दुःख सुख जीवन के दो पहलू है. इन्ही भावों को अभिव्यक्त करती यह सुन्दर रचना मन को भा गयी....... आभार !

Shanti Garg said...

कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

S.N SHUKLA said...

Mukesh sinha ji,
Rajani Malhotra ji,
आपके स्नेहिल समर्थन का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Rajesh Kumari ji,

आपके स्नेहाशीष का आभार, धन्यवाद .

S.N SHUKLA said...

Madhu ji,
Subeer Rwat ji,

आपके समर्थन से सार्थक हुयी रचना , आभार.

S.N SHUKLA said...

Shanti Garg ji,

आभारी हूँ इस स्नेह और अनुकम्पा का.

rajendra sharma said...

ati sundar rachanaa jeevan ke yatharth ke nikat

S.N SHUKLA said...

Rajendra Sharma ji,
आपके स्नेह और शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार .

महेन्‍द्र वर्मा said...

चक्र जीवन का निरंतर , एक सा किसका चला है ?
विजयश्री मिलती जिसे , मिलती उसे ही मात भी है

प्रकृति का पल-पल परिवर्तित दृश्य हमें नम्रतापूर्वक स्वीकार है।

एक गंभीर रचना।