कुछ ही दिन पूर्व , मेरी हुयी सगाई थी /
और मेरे जीवन में पहली बार-
भावी पत्नी से मिलन की घड़ी आई थी/
उसने मुझे पांच बजे वोल्गा में बुलाया था /
किन्तु मेरी घड़ी ने -
अभी चार का ही घंटा बजाया था /
मैनें पहली बार जाना -
आदमी कितना चाक- चौबंद हो जाता है,
शादी क्या -
सगाई के बाद से ही ,
समय का कितना पाबन्द हो जाता है /
बेकरारी में , मैंने ज्यों ही -
पान की दूकान के अर्ध आदमकद दर्पण की ओर,
अपना चेहरा घुमाया /
त्यों ही - मेरे कालेज का सहपाठी ,
राकेश मुझसे आ टकराया /
उसने आते ही पीठ पर धौल जमाई /
बरबस पूछना ही पड़ा , कैसी भाई ?
उसने बताया -
यार मेरी प्रेमिका , शीघ्र ही होने वाली पराई है /
इसीलिये , आख़िरी बार मुझसे मिलाने आई है /
आओ तुम्हे अपनी पसंद दिखाते हैं,
अपनी, भूतपूर्व होने जा रही प्रेमिका से -
तुम्हारा परिचय कराते हैं/
मेरे न चाहते हुए भी -
वह मुझे खींच लाया /
और मेरे अज़ीज़ दोस्त --------
कहते हुए -
उसने अपनी प्रेमिका से , मेरा परिचय कराया /
किन्तु मैं हतप्रभ ठगा सा ,
और वह शर्म से तार- तार थी /
क्योंकि उसकी प्रेमिका ही -
मेरी भावी जीवन नैया की पतवार थी /
मेरे सपनों के महल -
ढह गए थे /
और हम, एक बार फिर -
पति बनते- बनते रह गए थे /
-एस.एन.शुक्ल
और मेरे जीवन में पहली बार-
भावी पत्नी से मिलन की घड़ी आई थी/
उसने मुझे पांच बजे वोल्गा में बुलाया था /
किन्तु मेरी घड़ी ने -
अभी चार का ही घंटा बजाया था /
मैनें पहली बार जाना -
आदमी कितना चाक- चौबंद हो जाता है,
शादी क्या -
सगाई के बाद से ही ,
समय का कितना पाबन्द हो जाता है /
बेकरारी में , मैंने ज्यों ही -
पान की दूकान के अर्ध आदमकद दर्पण की ओर,
अपना चेहरा घुमाया /
त्यों ही - मेरे कालेज का सहपाठी ,
राकेश मुझसे आ टकराया /
उसने आते ही पीठ पर धौल जमाई /
बरबस पूछना ही पड़ा , कैसी भाई ?
उसने बताया -
यार मेरी प्रेमिका , शीघ्र ही होने वाली पराई है /
इसीलिये , आख़िरी बार मुझसे मिलाने आई है /
आओ तुम्हे अपनी पसंद दिखाते हैं,
अपनी, भूतपूर्व होने जा रही प्रेमिका से -
तुम्हारा परिचय कराते हैं/
मेरे न चाहते हुए भी -
वह मुझे खींच लाया /
और मेरे अज़ीज़ दोस्त --------
कहते हुए -
उसने अपनी प्रेमिका से , मेरा परिचय कराया /
किन्तु मैं हतप्रभ ठगा सा ,
और वह शर्म से तार- तार थी /
क्योंकि उसकी प्रेमिका ही -
मेरी भावी जीवन नैया की पतवार थी /
मेरे सपनों के महल -
ढह गए थे /
और हम, एक बार फिर -
पति बनते- बनते रह गए थे /
-एस.एन.शुक्ल
38 comments:
बेचारा ...
शुभकामनायें !
कभी कभी ऐसा भी तो होता है ज़िन्दगी में...दिलचस्प वाकया...
नीरज
:-)
सचमुच!! बेचारा...
बढ़िया रचना सर.
और दिल के अरमाँ आंसुओं में बह गए!!
मजेदार वाकया!!
वाह वाह ...
अंत में झटका देती रचना है.
बहूत खूब. बेहतरीन रचना...
शुभ मकर संक्रांति
Bahut achhi lagi.. dhanyavaad!! :) :)
शुभकामनायें
यह तो गड़बड़ हो गया
आह! किस्मत ने कहाँ लाकर मारा...बहुत रोचक प्रस्तुति..
आह! (पुरुष पात्र के लिए)
वाह! (कवि और कविता के लिए।)
बच गए आप तो भिया बाल-बाल. दोस्त आखिर दोस्त ही निकला. दोस्ती निभायी, खाई में गिरने से बचायी. अब आप को भी अपना फर्ज निभाना चाहिए था. दोस्त की अमानत ओ दोस्त तक पहुचना चाहिए था. भाई! मजा आ गया. वैसे यह केवल कविता भी नहीं है....
Satish saxena ji,
Neeraj Goswami ji,
आप मित्रों का समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना, धन्यवाद.
Vidya ji,
Lalit verma ji,
REENA MAURYA JI,
आपका स्नेह मिला, आभारी हूँ.
Madhuresh ji,
Kushwansh ji,
रचना को आपका स्नेह मिला, आभार.
Kailash sharma ji,
Manoj ji,
धन्यवाद आपके आशीर्वचनों के लिए, आभारी हूँ.
J. P. Tewari ji,
यह किसी मित्र का भोगा हुआ यथार्थ है, आपने जो कहा वही सच है.
हा हा बेचारा ... मज़ा आया इस निर्मल हास्य पे ...
मेरी संवेदनाएं इनके साथ हैं. मजेदार प्रस्तुति.
अरे वाह ! वाकई दिलचस्प ! बहुत सुंदर !
सौभाग्य मेरा कि आपने हमे आमंत्रित किया!
समर्थक बन रहा हूँ ताकि दोस्ती पक्की हो जाये!
कभी-कभी ऐसा भी होता है.
sankat ki is ghadi men ham apke sath hain....
khoobsurat majedar rachna...
saadar
चलिए जो हुआ अच्छा हुआ.
बढि़या हास्य कविता।
बहुत ही शिष्ट और शालीन हास्य.
शुक्ला जी,..बच गए वरना शादी के बाद,....
बहुत सुंदर रचना बहुत अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
मै कई बार आपके पोस्ट पर गया किन्तु आपने पलट कर भी नही देखा,ब्लॉग जगत का कुछ शिष्टाचार भी है,...
वाह वाह क्या बात है सर |
Digamber Naswa ji,
Rachana Dixit ji,
इस प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ,धन्यवाद.
Manish Singh Nirala ji,
Kewal joshi ji,
आपने सराहा, शब्द सार्थक हुए, आभार.
KUMAR JI,
आपकी सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.
MAHENDRA VERMA JI,
ARUN NIGAM JI,
रचना और मुझे आप मित्रों का स्नेह मिला, कृतज्ञ हूँ.
Dheerendra ji,
Jaidev Barua ji,
आपके स्नेहाशीष के लिए बहुत- बहुत आभार.
वाह ! बढ़िया प्रस्तुति ..
shukla ji bahut achi rachna laye hai aap .aaj ke dor me yahi ghat raha hai ....hahahah...shubhkamnaye.
SHASHI PANDEY JI,
B.S.GURGAR JI,
आपकी उदारमना प्रतिक्रियाओं का आभारी हूँ.
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
kafi dilchasp .....sundar sanyojan ...bahut bahut abhar Shukl ji
Sanjay Bhasker ji,
Navin Tripathi ji,
आपके समर्थन से सार्थक हुयी रचना, धन्यवाद.
Anya Rachnao se alag bejod prastuti ; sampurna Ghatna kram aakho ke samne kaundh gya is rachna to padh ke !
Aabhar ;
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