पत्थरों के शहर में , कितना सिर झुका के चलें ,
उठे जो संग , तो सिर को भी उठाते रहिये /
अन्धेरा सारा मिट सकेगा , ये मुमकिन न सही ,
फिर भी उम्मीद की , इक शमअ जलाते रहिये /
कोई तो तीर , निशाने पे लगेगा आखिर ,
ये सोचकर ही सही , तीर चलाते रहिये /
जो लड़ रहे हैं अंधेरों से , अकेले न पड़ें ,
उनकी आवाज़ में , आवाज़ मिलाते रहिये /
सियाह रात के फिर बाद , खुशनुमा है सहर ,
कम से कम इतना , दिलासा तो दिलाते रहिये /
कोई जगे न जगे , काम ये उनका है , मगर -
तुम्हारा फ़र्ज़ है , आवाज़ लगाते रहिये /
- एस. एन. शुक्ल
उठे जो संग , तो सिर को भी उठाते रहिये /
अन्धेरा सारा मिट सकेगा , ये मुमकिन न सही ,
फिर भी उम्मीद की , इक शमअ जलाते रहिये /
कोई तो तीर , निशाने पे लगेगा आखिर ,
ये सोचकर ही सही , तीर चलाते रहिये /
जो लड़ रहे हैं अंधेरों से , अकेले न पड़ें ,
उनकी आवाज़ में , आवाज़ मिलाते रहिये /
सियाह रात के फिर बाद , खुशनुमा है सहर ,
कम से कम इतना , दिलासा तो दिलाते रहिये /
कोई जगे न जगे , काम ये उनका है , मगर -
तुम्हारा फ़र्ज़ है , आवाज़ लगाते रहिये /
- एस. एन. शुक्ल
27 comments:
सर उठा नहीं पायेंगे, तो देश में राज्य पत्थरों का हो जायेगा।
अन्धेरा सारा मिट सकेगा , ये मुमकिन न सही ,
फिर भी उम्मीद की , इक शमअ जलाते रहिये /bahut khub..
आवाज़ लगाते रहिये....
एक जागरुक कवि का धर्म यही है कि वह इसका बिना खयाल किये कि 'सामान्य जन' सोया है अथवा अर्धचेतन है अथवा घोर निद्रा में है अथवा जागकर भी उठना नहीं चाहता....
वह अपनी आवाज में ही प्रेरणा जगाने के तरह-तरह से प्रयोग करता रहता है..
आपने एक श्रेष्ठ ग़ज़ल रची .... बधाई.
प्रयास जारी रखने को प्रेरित करती सुन्दर प्रस्तुति! दुन्दुभी बजती रहे... तन्द्रा अवश्य भंग होगी!
सियाह रात के फिर बाद , खुशनुमा है सहर ,
कम से कम इतना , दिलासा तो दिलाते रहिये /
बेहतरीन गज़ल
satat prayas aur asha hi zindagi hai...bahut sundar....aabhaar
बहुत बहुत लाजवाब...
बढ़िया...
सादर.
आपकी प्रस्तुति भी अच्छी लगी । धन्यवाद ।
कोई जगे न जगे , काम ये उनका है , मगर -
तुम्हारा फ़र्ज़ है , आवाज़ लगाते रहिये /
वाह ! बहुत उम्दा शेर, सार्थक संदेश देती हुई गजल!
very positive!
umda ghajal !
माना कि राह में अडचनों की कमी नहीं
कुछ बेपरवाह हो, कदम बढ़ाते रहिये
बहुत अच्छी लगी
वाह!क्या बात है बहुत ही उम्दा लिखा आप ने..... सियाह रात के फिर बाद, खुशनुमा है सहर ,कम से कम इतना दिलासा तो दिलाते रहिये ......बहुत ही अच्छी और सकारात्मत रचना है बधाई स्वीकारें ......
बहुत सुंदर आह्वान...सकारात्मक भाव संजोये बहुत सुंदर प्रस्तुति..
KOI TO TEER NISHANE PE LAGEGA AKHIR ............ VAH SHUKL JI HAR AK SHER LAJABAB ... VAKAI AK KHOOBSOORAT GAZAL ...ABHAR.
Pravin pandey ji,
Asha Bisht ji,
आप मित्रों द्वारा की गयी प्रशंसा का बहुत- बहुत आभार.
Pratul vashisth ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का आभारी हूँ.
Anupama pathak ji,
Sangita ji,
आपके स्नेहाशीष का ह्रदय से आभार.
Swati vallabh Raj ji,
आपके समर्थन और उत्साहवर्धन का बहुत- बहुत धन्यवाद.
Vidya ji,
Anita ji,
मेरी रचना को आप शुभचिंतकों का स्नेह मेरे लिए पुरस्कार है , आभार.
Sawai Singh Rajpurohit ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का आभारी हूँ.
SONARUPA JI,
Pranshu ji,
Point ji,
आपके समर्थन और उत्साहवर्धन का बहुत- बहुत धन्यवाद.
Awanti Singh ji,
आपके उत्साहवर्धन का बहुत- बहुत धन्यवाद.
Kailash Sharma ji,
मेरी रचना को आप का स्नेह मेरे लिए पुरस्कार है , आभार.
Navin Mani Tripathi ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का ह्रदय से आभार.
सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना,.....
नया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
कोई तो तीर , निशाने पे लगेगा आखिर ,ये सोचकर ही सही , तीर चलाते रहिये /
very nice;;
your poems are truly a masterpiece;;
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