आ गयी फिर शरद ऋतू ठिठुरती हुई ,
आग का सेक दे , इसको गरमाइये /
कंप रही शीत से , कितनी बेचैन है,
गर्म कपड़े इसे , थोड़े पहनाइये /
साथ में कुहरे , पाले से बच्चे भी हैं ,
देर तक ये जगेंगे , सतायेंगे भी /
ये शरारत न कर पायें , सो जाएँ चुप ,
इनको गद्दे , लिहाफों में बहलाइए /
ताज़ा पूडी - कचौड़ी व छोले - करी -
में ज़रा छौंक , मेथी की लगवाइए /
गुनगुनी चाय संग केक - बिस्कुट नहीं,
प्याज के कुछ पकौड़े भी तलवाइये /
बात है कुछ दिनों की ये , स्वागत करो,
यह अतिथि है इसे ज्यादा टिकना नहीं /
हर अतिथि देव है, अपनी संस्कृति है ये ,
इसलिए इसको आसन दे बिठलाइये /
एक ही माह की बात बस शेष है ,
सरदी बच्चों को लेकर चली जायेगी /
फिर वसंती पवन , आयेगी सज के तन ,
साथ में , मधु- मधुर गंध भी लायेगी /
रात के बाद दिन , और फिर रात- दिन ,
यह समय चक्र , यूँ ही चला है सदा /
सर्दियाँ जायेंगी , गर्मियाँ आयेंगी ,
तब तलक द्वार पर , आग जलवाइये /
- एस. एन. शुक्ल
आग का सेक दे , इसको गरमाइये /
कंप रही शीत से , कितनी बेचैन है,
गर्म कपड़े इसे , थोड़े पहनाइये /
साथ में कुहरे , पाले से बच्चे भी हैं ,
देर तक ये जगेंगे , सतायेंगे भी /
ये शरारत न कर पायें , सो जाएँ चुप ,
इनको गद्दे , लिहाफों में बहलाइए /
ताज़ा पूडी - कचौड़ी व छोले - करी -
में ज़रा छौंक , मेथी की लगवाइए /
गुनगुनी चाय संग केक - बिस्कुट नहीं,
प्याज के कुछ पकौड़े भी तलवाइये /
बात है कुछ दिनों की ये , स्वागत करो,
यह अतिथि है इसे ज्यादा टिकना नहीं /
हर अतिथि देव है, अपनी संस्कृति है ये ,
इसलिए इसको आसन दे बिठलाइये /
एक ही माह की बात बस शेष है ,
सरदी बच्चों को लेकर चली जायेगी /
फिर वसंती पवन , आयेगी सज के तन ,
साथ में , मधु- मधुर गंध भी लायेगी /
रात के बाद दिन , और फिर रात- दिन ,
यह समय चक्र , यूँ ही चला है सदा /
सर्दियाँ जायेंगी , गर्मियाँ आयेंगी ,
तब तलक द्वार पर , आग जलवाइये /
- एस. एन. शुक्ल
34 comments:
कुछ तो सुकूं लाइये।
:-)
वाह सर...बढ़िया सलाहों से भरी रोचक कविता...
सादर.
बहुत सुन्दर,
शरद ऋतू आई है तो जल्द बसंत भी आयेगा ! जरूरत है कि जो सामने है उसका लुफ्त लीजिये !
सर्दी का अपना ही मज़ा है ..अच्छी प्रस्तुति
बढिया मस्त अंदाज़ मे लिखी गयी कविता ...पढ़ के मज़ा आ गया
खूब सुंदर शब्दों और भावों से स्वागत किया है आपने शीत का ! हम ऋतु का अपना आनन्द है । प्रकृति पुजारी बन इसे सराहें इसी में मानव-मात्र का कल्याण है ।
har mausam ka swaagat karna chahiye.sardi ki ritu ki achchi kavita likhi hai.
WAH...BAHUT KHOOB....THAND KA EHSAS IS PYARI KAVITA KAY SAATH
bahut sundar rachana hai...
janaab kyu pakodo ki baat kar ke hamare muh me paani laa rahe hain ?
ha.ha.ha.
bahut samsaamyik rachna.
sundar prstuti ...
Pravin pandey ji,
Vidya ji,
P. C. Godiyal ji,
आप मित्रों का मेरी रचना को स्नेह मिला, शब्द सार्थक हुए.
Sangita ji,
आप का स्नेहाशीष मिला, आभारी हूँ.
Manjula ji,
Sushila ji,
Rajesh kumari ji,
रचनाकी सराहना के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.
Reva ji,
Reena Maurya ji,
Anamika ji,
आप जैसे स्नेही मित्रों की शुभकामनाएं प्रेरणा देती हैं.
Jaidev Barua ji,
aapakaa samarthan mila, aabhaaree hoon, yah mitrata chirsthaayee chaahoongaa.
कल 24/12/2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
are wah.bahut badhiya.
क्या बात है सर! वाह!
रोचक कविता...
Anupama ji,
Nisha Maharana ji,
आप मित्रों का स्नेहाशीष मिला, आभारी हूँ.
Yashwant Mathur ji,
Points ----
आप मित्रों की शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार .
वाह ...बहुत खूब।
बहुत खूब! बहुत रोचक प्रस्तुति...
सुन्दर एवं रोचक कविता! बढ़िया लगा!
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
ऋतु पर बढ़िया रचना, अलाव भी है, गर्म पकौड़े भी. वाह !!!!
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
वाह, सर्दी के मौसम का बहुत सुंदर चित्र उकेरा है आपने।
bahut hi sundar kavita ...
Sada ji,
Kailash ji,
रचना की प्रसंशा के लिए आप मित्रों का आभार, यह अनुकम्पा बनाए रखियेगा .
Urmi ji,
Arun Nigam ji,
Prem ji,
.
आप मित्रों की मेरी कलम को अनुशंसा मिली , आभारी हूँ.
Mahendra verma ji,
Ashok Birla ji,
बहुत- बहुत आभार आपके स्नेह का.
वाह! एक अलग तरह की कल्पना से निर्मित रचना को पढ़ कर अच्छा लगा .....
Avanti singh ji,
ब्लॉग पर पधारने और समर्थन प्रदान करने का बहुत- बहुत आभार
बहुत सुन्दर रचना,बधाई.
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