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Friday, December 16, 2011

(126) इनको रोकिये /

       एक थप्पड़ पे बहस इतनी, कि बस मत पूछिए
        मानों बम फिर फट पड़ा हो झवेरी बाज़ार में /
        aur जो हर रोज थप्पड़ खा रहे हैं लाखों - लाख ,
        क्या वे थप्पड़ लग रहे हैं , हुक्मरां के प्यार में ?

       जिसने मारा, उसको बेशक बंद कर दो जेल में ,
        मगर यह तो हो नहीं सकता , बगावत का ज़वाब /
        खोलिए आँखें , ये पहला वाकया भी तो नहीं,
        करवटें लेता है दिखता , फिर फ़जां में इन्कलाब /

        समझो क्यों इन्सान , गुस्से में उबलने लग गया ,
        समझो क्यों जोश -ए-ज़वानी, इस कदर है तैश में /
        ख्व़ाब में खोये रहे , समझा न रैय्यत का मिज़ाज ,
        तो   नहीं   महफूज़   रह    पाओगे ,    शाही-ऐश  में /
                                                                ----------

        सच ये थप्पड़ है, समूची हुकूमत के गाल पर ,
        सच ये है सोज़े- बगावत हुक्मरानों के खिलाफ़ /
        ज़ब   तहम्मुल  की  हदें  हैं  टूटती ,  होता है ये ,
        उठ खड़ा होता है इन्सां , साहबानों के खिलाफ़ /

        गर्म   है   माहौल ,   शोलें   हैं   जवानों   के   दिमाग़ ,
        आंधियाँ उठने को हैं , मत धूल इन पर झोंकिये /
        ज़र्रा- ज़र्रा   आग   बन   जाने   को   ज़ब   बेचैन   है ,
        हाथ ये , हथियार बन सकते हैं , इनको रोकिये /
                                        
                                                     - एस. एन. शुक्ल

      शाही-ऐश = राजभवन की विलासिता
      सोज़े- बगावत = विद्रोह की ज्वाला
      तहम्मुल = सहनशीलता
      ज़र्रा- ज़र्रा = कण- कण



21 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत खूब सर!

सादर

प्रवीण पाण्डेय said...

सब कुछ तो प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है, वरीयता उसी अनुसार ही दी जाती है।

ASHOK BIRLA said...

हाथ जिनमे हो जूनून कटते नहीं तलवार से .......और भड़केगा जो शौला सा हमारे दिल में है .........हर हिनुस्तानी के दिल की बात कह दी आप ने इस मुकम्मल काव्य में ....आम आदमी की हलचल थी ये तो कही गुस्सा फुट पड़ा तो क्या होगा .....बहुत ही सुन्दर सृजन ...काव्याकाश के इस राही धन्यवाद् स्वीकार करे

vidya said...

आपकी जोशीली कविता पढ़ कर आनंद आ गया..
आभार.

S.N SHUKLA said...

yashvant जी,
pravin पाण्डेय जी,
आप मित्रों का समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना, आभार.

S.N SHUKLA said...

अशोक बिरला जी ,
विद्या जी,
rachanaa को आप शुभचिंतकों का स्नेह मिला , utsaahavardhan का आभारी हूँ .

shikha varshney said...

शब्द शब्द में आक्रोश झलक रहा है. जायज़ भी है.

मनोज कुमार said...

सच है कि ये थप्पड़ है हुक्मरानों के खिलाफ़।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

शुक्ला जी आज तो अक्षरों से चिंगारियाँ निकल पड़ी हैं.
जिया मोरा मुश्किल में पड़ गयो रे,
गजब भयो रामा, जुलम भयो रे !!!!!!!!

Urmi said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बेहद पसंद आया! उम्दा प्रस्तुती!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

शुक्ल जी!
एक उसने मारा था और आज आपने भी लगा दिया!!

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर.. जोश से भरी रचना..

Urmi said...

उम्दा रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
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दिगम्बर नासवा said...

वाह .. स्पष्ट लिख दिया जनता का दर्द ...

S.N SHUKLA said...

Shikha i,
Manoj ji,

आपका पूर्ववत स्नेह फिर मिला मेरी कलम को, आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Arun Nigam ji,
Urmi ji,
आप मित्रों के उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभार , यह अनुकम्पा बनाए रखियेगा.

S.N SHUKLA said...

Roopchand Shastri ji,
Lalit verma ji,

आप मित्रों के स्नेह और शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Maheshwari Kaneri ji,
Digamber Naswa ji,
आपका स्नेहाशीष मिला, आभार, धन्यवाद.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

शुक्ला जी,..वाह!!!!!!!!जबरजस्त इंकलाबी रचना ,....बहुत२ बधाई ,....

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S.N SHUKLA said...

Dheerendra ji,

आपने सराहा, आभारी हूँ मैं.

बहुत सुन्दर रचना,बधाई.