एक थप्पड़ पे बहस इतनी, कि बस मत पूछिए
मानों बम फिर फट पड़ा हो झवेरी बाज़ार में /
aur जो हर रोज थप्पड़ खा रहे हैं लाखों - लाख ,
क्या वे थप्पड़ लग रहे हैं , हुक्मरां के प्यार में ?
जिसने मारा, उसको बेशक बंद कर दो जेल में ,
मगर यह तो हो नहीं सकता , बगावत का ज़वाब /
खोलिए आँखें , ये पहला वाकया भी तो नहीं,
करवटें लेता है दिखता , फिर फ़जां में इन्कलाब /
समझो क्यों इन्सान , गुस्से में उबलने लग गया ,
समझो क्यों जोश -ए-ज़वानी, इस कदर है तैश में /
ख्व़ाब में खोये रहे , समझा न रैय्यत का मिज़ाज ,
तो नहीं महफूज़ रह पाओगे , शाही-ऐश में /
----------
सच ये थप्पड़ है, समूची हुकूमत के गाल पर ,
सच ये है सोज़े- बगावत हुक्मरानों के खिलाफ़ /
ज़ब तहम्मुल की हदें हैं टूटती , होता है ये ,
उठ खड़ा होता है इन्सां , साहबानों के खिलाफ़ /
गर्म है माहौल , शोलें हैं जवानों के दिमाग़ ,
आंधियाँ उठने को हैं , मत धूल इन पर झोंकिये /
ज़र्रा- ज़र्रा आग बन जाने को ज़ब बेचैन है ,
हाथ ये , हथियार बन सकते हैं , इनको रोकिये /
- एस. एन. शुक्ल
शाही-ऐश = राजभवन की विलासिता
सोज़े- बगावत = विद्रोह की ज्वाला
तहम्मुल = सहनशीलता
ज़र्रा- ज़र्रा = कण- कण
मानों बम फिर फट पड़ा हो झवेरी बाज़ार में /
aur जो हर रोज थप्पड़ खा रहे हैं लाखों - लाख ,
क्या वे थप्पड़ लग रहे हैं , हुक्मरां के प्यार में ?
जिसने मारा, उसको बेशक बंद कर दो जेल में ,
मगर यह तो हो नहीं सकता , बगावत का ज़वाब /
खोलिए आँखें , ये पहला वाकया भी तो नहीं,
करवटें लेता है दिखता , फिर फ़जां में इन्कलाब /
समझो क्यों इन्सान , गुस्से में उबलने लग गया ,
समझो क्यों जोश -ए-ज़वानी, इस कदर है तैश में /
ख्व़ाब में खोये रहे , समझा न रैय्यत का मिज़ाज ,
तो नहीं महफूज़ रह पाओगे , शाही-ऐश में /
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सच ये थप्पड़ है, समूची हुकूमत के गाल पर ,
सच ये है सोज़े- बगावत हुक्मरानों के खिलाफ़ /
ज़ब तहम्मुल की हदें हैं टूटती , होता है ये ,
उठ खड़ा होता है इन्सां , साहबानों के खिलाफ़ /
गर्म है माहौल , शोलें हैं जवानों के दिमाग़ ,
आंधियाँ उठने को हैं , मत धूल इन पर झोंकिये /
ज़र्रा- ज़र्रा आग बन जाने को ज़ब बेचैन है ,
हाथ ये , हथियार बन सकते हैं , इनको रोकिये /
- एस. एन. शुक्ल
शाही-ऐश = राजभवन की विलासिता
सोज़े- बगावत = विद्रोह की ज्वाला
तहम्मुल = सहनशीलता
ज़र्रा- ज़र्रा = कण- कण
21 comments:
बहुत खूब सर!
सादर
सब कुछ तो प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है, वरीयता उसी अनुसार ही दी जाती है।
हाथ जिनमे हो जूनून कटते नहीं तलवार से .......और भड़केगा जो शौला सा हमारे दिल में है .........हर हिनुस्तानी के दिल की बात कह दी आप ने इस मुकम्मल काव्य में ....आम आदमी की हलचल थी ये तो कही गुस्सा फुट पड़ा तो क्या होगा .....बहुत ही सुन्दर सृजन ...काव्याकाश के इस राही धन्यवाद् स्वीकार करे
आपकी जोशीली कविता पढ़ कर आनंद आ गया..
आभार.
yashvant जी,
pravin पाण्डेय जी,
आप मित्रों का समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना, आभार.
अशोक बिरला जी ,
विद्या जी,
rachanaa को आप शुभचिंतकों का स्नेह मिला , utsaahavardhan का आभारी हूँ .
शब्द शब्द में आक्रोश झलक रहा है. जायज़ भी है.
सच है कि ये थप्पड़ है हुक्मरानों के खिलाफ़।
शुक्ला जी आज तो अक्षरों से चिंगारियाँ निकल पड़ी हैं.
जिया मोरा मुश्किल में पड़ गयो रे,
गजब भयो रामा, जुलम भयो रे !!!!!!!!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बेहद पसंद आया! उम्दा प्रस्तुती!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
शुक्ल जी!
एक उसने मारा था और आज आपने भी लगा दिया!!
बहुत सुन्दर.. जोश से भरी रचना..
उम्दा रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
वाह .. स्पष्ट लिख दिया जनता का दर्द ...
Shikha i,
Manoj ji,
आपका पूर्ववत स्नेह फिर मिला मेरी कलम को, आभारी हूँ.
Arun Nigam ji,
Urmi ji,
आप मित्रों के उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभार , यह अनुकम्पा बनाए रखियेगा.
Roopchand Shastri ji,
Lalit verma ji,
आप मित्रों के स्नेह और शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Maheshwari Kaneri ji,
Digamber Naswa ji,
आपका स्नेहाशीष मिला, आभार, धन्यवाद.
शुक्ला जी,..वाह!!!!!!!!जबरजस्त इंकलाबी रचना ,....बहुत२ बधाई ,....
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Dheerendra ji,
आपने सराहा, आभारी हूँ मैं.
बहुत सुन्दर रचना,बधाई.
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