अन्धेरा घिर न आये दोस्तों, बुझती शमां बदलो /
चमन गुलज़ार कर पाए न , ऐसा बागवाँ बदलो /
दिलों में जल रही है आग , कैसी कसमसाहट है,
ज़माना , चाहता कुछ कर गुजरना है , समां बदलो /
न ज्यादा आजमाने की , ज़रुरत रह गई इनको ,
गुज़र जाएँ न लमहे , वक़्त रहते राजदां बदलो /
तसल्ली कब तलक होगी भला झूठे दिलासों से ,
अगर बरसें न ये बादल , तो सारा आसमां बदलो /
दिया तब पीठ पर खंजर, इन्हें जब भी मिला मौक़ा ,
लुटेरे काफिले का साथ छोडो , कारवां बदलो /
ये इस्पाती घड़े हैं , जुर्म से भर जायेंगे , फिर भी ,
न टूटेंगे , इन्हें तोड़ो , पुरानी दास्तां बदलो /
- S. N. Shukla
चमन गुलज़ार कर पाए न , ऐसा बागवाँ बदलो /
दिलों में जल रही है आग , कैसी कसमसाहट है,
ज़माना , चाहता कुछ कर गुजरना है , समां बदलो /
न ज्यादा आजमाने की , ज़रुरत रह गई इनको ,
गुज़र जाएँ न लमहे , वक़्त रहते राजदां बदलो /
तसल्ली कब तलक होगी भला झूठे दिलासों से ,
अगर बरसें न ये बादल , तो सारा आसमां बदलो /
दिया तब पीठ पर खंजर, इन्हें जब भी मिला मौक़ा ,
लुटेरे काफिले का साथ छोडो , कारवां बदलो /
ये इस्पाती घड़े हैं , जुर्म से भर जायेंगे , फिर भी ,
न टूटेंगे , इन्हें तोड़ो , पुरानी दास्तां बदलो /
- S. N. Shukla
21 comments:
gahan ...chintan se bhari .....suder rachna ...
abhar.
बदल डालने का यह संकल्प फलीभूत हो!
प्रेरणा जगाती कविता।
बढ़िया...
Anupama Tripathi ji,
Anupama Pathak ji,
आपने सराहा, शब्दों को सार्थकता दी, बहुत- बहुत आभार.
Pravin pandey ji,
Manoj patel ji,
आप शुभचिंतकों के समर्थन का ह्रदय से आभारी हूँ, धन्यवाद .
बदलने का आहवान बहुत ही ओजस्वी स्वर में किया है आपने! एक सोच की शुरूआत है जो विचार और कर्म भी बनेगी ! आमीन !
तसल्ली कब तलक होगी भला झूठे दिलासों से ,
अगर बरसें न ये बादल , तो सारा आसमां बदलो /
वाह , बहुत सुन्दर ..प्रेरणादायक रचना
न ज्यादा आजमाने की , ज़रुरत रह गई इनको ,
गुज़र जाएँ न लमहे , वक़्त रहते राजदां बदलो /
behad khub.....
वाह...बहुत सुन्दर और सार्थक कविता...
ati sundar prastuti hai...
Sushila ji,
सराहना और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.
Sangita ji,
आपका स्नेहाशीष मिला , हार्दिक आभार.
Dr. Roopchandra Shastri ji,
Asha ji,
Vidya ji,
आपकी सराहना का आभार व्यक्त करता हूँ.
रीना मौर्या जी,
रचना को आपका स्नेह और समर्थन मिला , आभारी हूँ.
दिलों में जल रही है आग , कैसी कसमसाहट है,
ज़माना , चाहता कुछ कर गुजरना है , समां बदलो /
सचमुच आज परिवर्तन होना अवश्यम्भावी है...सुंदर प्रस्तुति !
परिवर्तन का इशारा करती अच्छी ग़ज़ल।
बधाई, शुक्ल जी।
अनीता जी,
महेंद्र वर्मा जी,
आप दोनों शुभचिंतकों की शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ आपके स्नेह का .
'ये इस्पाती घड़े हैं जुर्म से भर जायेंगे फिर भी
न टूटेंगे, इन्हें तोड़ो, पुरानी दास्ताँ बदलो |'
घड़े इस्पात के चाहे घड़े मजबूत कितने हों
गलेंगे मोम बन के तुम दिल में दहकती आग में बदलो |
shukal ji namskar, bdlaav ko preit karti gajal
अमरनाथ " मधुर " जी ,
सुमन दुबे जी,
आप शुभचिंतकों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ , धन्यवाद .
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