ये सस्य- श्यामला धरा, ये नीलिमा लिए गगन,
ये तारकों भरी निशा , सुबह की मद भरी पवन,
ये शीत, ताप, मेह , अंधकार में , प्रकाश में ,
ये हिम , नदी प्रवाह और शुभ्र जलप्रपात में,
ये सूर्य- चन्द्र रश्मियों में ,जिसका साहकार है/
अजब वो चित्रकार है , गज़ब वो शिल्पकार है /
हरी- भरी ये वादियाँ, पहाड़ ये तने - तने ,
ये लहलहाते खेत और बाग़- वन घने - घने ,
वो जिसने रत्न हैं धरा के गर्भ में छुपा धरे ,
वो जिसके हर प्रयत्न हैं , मनुष्य बुद्धि से परे ,
जलधि तरंग को , उछालता जो बार- बार है /
अजब वो चित्रकार है , गज़ब वो शिल्पकार है /
असीम वारि राशि से, भरे हुए समुद्र ये ,
समुद्र के विशालकाय और जंतु छुद्र ये ,
ये व्योम, वायु ,अग्नि,वारि , भूमि पंचतत्व से,
रचाया प्राणिमात्र को , विधान से, ममत्व से ,
किया उसी ने, जीवनीय शक्ति का संचार है /
अजब वो चित्रकार है , गज़ब वो शिल्पकार है /
रचे उसी ने जीव और जंतु हर प्रजाति के ,
रचे उसी ने अन्न , फल व पुष्प भाँति- भाँति के ,
रचा उसी ने धूप- छाँव , मेघ की फुहार को ,
रचा उसी ने वायु को, वसंत की बहार को ,
किया उसी ने रंग, गंध , स्वाद का प्रसार है /
अजब वो चित्रकार है , गज़ब वो शिल्पकार है /
34 comments:
काश उसे महान शिल्पकार ही मान सब पूजते।
सच उसके जैसा शिल्पकार कोई नहीं .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
shat-shat naman us shilpkar ko ......
bahut sunder kavita ...
shubhkamnayen.
सही कहा सर!
अनुपम कविता विषय के अनुरूप ....मनुष्यता प्रकतिशिल्प को पूजे,सहेजे.....यही कामना है
वाकई महान शिल्पकार है वो.
आपने पंडित भारत्व्यास की महान रचना "हरी-भरी वसुंधरा पे नीला-नीला ये गगन" याद दिला दी! बहुत सुन्दर रचना!!
us mahaan shilpkaar ko naman saath saath aapka aabhar jo itni sundar rachna likhi hai.
बेहद सुन्दर प्रस्तुति.. सचमुच वो शिल्पकार अतुलनीय है,,,!!
बहुत सुंदर और प्रभावी अभिव्यक्ति..
•आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...कल शनिवार (५-११-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ......कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें .....!!!धन्यवाद.
bahut khoob bahut sundar
उस शिल्पकार की सौम्यता आपके हांथों देखते बनती है मित्र ..... बहुत सुन्दर धन्यवाद /
शाश्वत प्रश्न ही बना है वह शिल्पकार…
behtreen prstuti...
बहुत सुंदर
क्या कहने
अति सुंदर ! वो शिल्पकार तो गज़ब है ही आपकी रचना भी अत्यंत सुंदर है! बधाई !
♥
आदरणीय एस एन शुक्ल जी
सस्नेहाभिवादन !
ये सस्य- श्यामला धरा, ये नीलिमा लिए गगन,
ये तारकों भरी निशा , सुबह की मद भरी पवन,
ये शीत, ताप, मेह , अंधकार में , प्रकाश में ,
ये हिम , नदी प्रवाह और शुभ्र जलप्रपात में,
ये सूर्य- चन्द्र रश्मियों में ,जिसका साहकार है
अजब वो चित्रकार है , गज़ब वो शिल्पकार है
सर जी ! गीत का प्रवाह देखते ही बनता है ।
सलिल जी ने सही कहा , पंडित भरत व्यास जी की याद दिला दी आपने … ( हमारे ही शहर के थे पंडित जी । )
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
रचा उसी ने धूप- छाँव , मेघ की फुहार को ,
रचा उसी ने वायु को, वसंत की बहार को ,
किया उसी ने रंग, गंध , स्वाद का प्रसार है ।
अजब वो चित्रकार है , गजब वो शिल्पकार है ।
हां, वह शिल्पकार अजब है। हमें उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।
सुंदर प्रस्तुति।
Pravin pandey ji,
Sangita ji,
Anupama ji,
आपकी शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार.
Pravin pandey ji,
Sangita ji,
Anupama ji,
आपकी शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार.
Yashavant Mathur ji,
Dr . Sonaroopa ji,
Shikha varshney ji,
रचना को आप मित्रों का स्नेहाशीष मिला, आभार, धन्यवाद.
Dr. Roopchandra Shastri ji,
चर्चामंच में मेरी रचना को स्थान प्रदान करने का आभारी हूँ.
Lalit varma ji,
Asha Bisht ji,
Rajesh kumari ji,
आप शुभचिंतकों का स्नेह हमें बल प्रदान करता है.
Kailash C Sharma ji,
बहुत- बहुत आभार आपके समर्थन का.
Anupama ji,
चर्चामंच में मेरी रचना को स्थान प्रदान करने का
आभारी हूँ .
Vikash Mogha ji,
Uday veer singh ji,
Chandan kumar Misra ji,
बहुत- बहुत आभार आपके समर्थन का.
Sagar ji,
Mahendra ji,
आप मित्रों का उत्साहवर्धन ही हमारा मार्गदर्शक है.
Sushila ji,
Rajendra ji,
स्नेहाशीष मिला, आभार, धन्यवाद.
आप मित्रों का उत्साहवर्धन ही हमारा मार्गदर्शक है.
Mahendra verma ji,
धन्यवाद रचना की प्रशंसा के लिए.
सुन्दर प्रस्तुति!
आदरणीय महोदया
प्रेम की उपासक अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा इसी शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
भवदीय
(अशोक कुमार शुक्ला)
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
भवदीय
(अशोक कुमार शुक्ला)
bahut hi sundar or prabhavi rachana hai
Anupama ji,
Reena Maurya ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभार.
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