भूलना कर्तव्य को , अधिकार की बातें हमेशा ,
इस समूचे देश में , हर वर्ग का बस एक पेशा ,
दंभ का कुहरा , विनय की चाँदनी पर छा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
कर रहा छल- छद्म , जैसे हर नगर में आज फेरा ,
बन रहे अपने , पराये , स्वार्थ का हर और डेरा ,
स्वान का सा धर्म , अब मानव मानों को भा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
आधुनिकता की डगर में , टूटते रिश्ते पुराने ,
पालकों तक के हुए अब , आज सब चेहरे अजाने ,
अंधड़ों में फँस यहाँ , हर आदमी छितरा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
पागलों से घूमते हम , शस्त्र अपनों पर उठाये ,
क्या अमिय का अर्थ , जब विषकुम्भ निज उर में छिपाए?
दुष्टता का दैत्य ! मानवता ह्रदय की खा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
- S. N. Shukla
इस समूचे देश में , हर वर्ग का बस एक पेशा ,
दंभ का कुहरा , विनय की चाँदनी पर छा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
कर रहा छल- छद्म , जैसे हर नगर में आज फेरा ,
बन रहे अपने , पराये , स्वार्थ का हर और डेरा ,
स्वान का सा धर्म , अब मानव मानों को भा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
आधुनिकता की डगर में , टूटते रिश्ते पुराने ,
पालकों तक के हुए अब , आज सब चेहरे अजाने ,
अंधड़ों में फँस यहाँ , हर आदमी छितरा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
पागलों से घूमते हम , शस्त्र अपनों पर उठाये ,
क्या अमिय का अर्थ , जब विषकुम्भ निज उर में छिपाए?
दुष्टता का दैत्य ! मानवता ह्रदय की खा गया है ,
फिर अँधेरा दौर कैसा , इस धरा पर आ गया है ?
- S. N. Shukla
29 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति ।
Kya amiya ka arth......yeh line chhoo gayi dil ko
आत्मा स्वार्थ के कारागार से मुक्त हो तभी यह अँधेरा दूर होगा!
सुन्दर रचना!
अजब दौर से गुज़र रहा है विश्व।
शुरू से आखिर तक ...प्रहार दर प्रहार.
प्रभावशाली....
LAJAWAB
सुन्दर कविता पर मेरी हार्दिक शुभकामनाये .....
वर्त्तमान परिस्थिति की वास्तविक प्रस्तुति!!
aaj ke haalaat par ek sateek prastuti.
Sada ji,
Yogesh Sharma ji,
Anupama ji,
आप मित्रों के उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभारी हूँ.
Pravin pandey ji,
Shikha varshney ji,
Neeraj Goswami ji,
आप शुभचिंतकों का समर्थन मिला , आभारी हूँ.
Adarniy Shastri ji,
चर्चामंच में मेरे शब्दों को स्थान देने का बहुत- बहुत आभार.
Rajiv Matwala ji,
Lalit verma ji,
आपकी शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार.
excellent.....nice composition sir.
सुन्दर कविता, शुभकामनाये ..
सुन्दर कविता, शुभकामनाये ..
Vidya ji,
बहुत- बहुत आभार आपके स्नेह और समर्थन का.
Sunil kumar ji,
आपका स्नेह मिला आभारी हूँ.
"दुष्टता का दैत्य मानवता ह्रदय की खा गया है"
अमिय, विष्कुंभ बहुत सुंदर प्रतीक बन पड़े हैं !
मन को उद्वेलित करती विचारोत्तेजक कविता जो सोचने पर विवश करती है कि क्या हम अपने लिये ऐसी दुनिया चाह्ते हैं ?
बधाई शुक्ला जी ! जीवन को सँवारने का प्रयत्न करते रहें ।
बहुत सुंदर रचना
क्या बात है
कविता लिखना खेल नहीं है,पूछो इन फनकारों से
ये लोहे लो काट रहे हैं,कागज की तलवारों से
सुन्दर प्रस्तुति
बधाई
सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! लाजवाब एवं प्रभावशाली रचना!
हमलोग अधोपतन की ओर जा रहे हैं ...आपने वाकई ...पूर्णता को दर्शा दिया हैं बधाई
बहुत सुन्दर , बेहतरीन प्रस्तुति..
आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
Shushila ji ,
.
आपने सराहा , उत्साहवर्धन किया, आभारी हूँ.
Mahendra Shrivastava ji,
Rahul Pandit ji,
आप मित्रों का स्नेह मिला , आभार, धन्यवाद .
BABALI JI,
Babban Pandey ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का ह्रदय से आभारी हूँ,
Maheshwari Kaneri ji,
Prem Sarovar ji,
आभार आप शुभचिंतकों का ब्लॉग पर पधारने और समर्थन प्रदान करने का.
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