न जाने कौन सी , चुभी हुई दिलों में फाँस है
न जाने कौन खौफ से , हैं लोग यूँ डरे हुए
न जाने क्यों , ये घुचघुचे से आँख में भरे हुए
न जाने कौन सा यहाँ , कहाँ हुआ बवाल है
न जाने क्यों हर एक आँख में यहाँ सवाल है
न जाने क्या जला , कहाँ , ये गंध क्यों जली-जली
न जाने कैसी राख , उड़ रही यहाँ गली-गली
सुना है कल , सियासती हुजूम था इसी शहर
उसी हुजूम ने शहर में ढाया इस कदर कहर
छुरे, कटार, बम चले, कहीं पे गोलियाँ चलीं
धधकने लग गया शहर, लहू बहा गली-गली
ये क्या हुआ, ये क्यों हुआ ,किसी को कुछ पता नहीं
किसी से पूछिए , तो बोलता है बस ' न जाने क्यों '
न जाने क्यों ?न जाने क्यों ?न जाने क्यों ?न जाने क्यों ?
30 comments:
ek anuttarit prashan ke sath kavita ka ant bahut kuch sochne ke liye vivash karta hai .sarthak chot karti rachna .aabhar
बेहद मार्मिक चित्रण किया है और उसके बाद के सवाल इसी तरह कचोटते हैं।
ये घुचघुचे से आँख में भरे हुए ||
बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति ||
सादर अभिनन्दन ||
सृजन ! अनन्य, पढ़ते , हुए नम नयन , न जाने क्यों ?
ये नेता, कैसे,लूटते सपन- कफ़न, न जाने क्यों ?
सुलग रहे सवालों में, सुलग रहे हैं नागरिक ,
बताये कौन, ऐसे चल रहा वतन न जाने क्यों ?
स्वदेश-स्वाभिमान पथ , कृपान हो ये लेखनी /
नयन, सुमन- सुमन का परित्राण हो ये लेखनी /
अति सुन्दर , साभार
बस यही उत्तर तो नहीं मिलते हैं।
न जाने कौन सा यहाँ , कहाँ हुआ बवाल है
न जाने क्यों हर एक आँख में यहाँ सवाल है
मर्मस्पर्शी रचना...
सादर बधाई...
shikha ji,
vandana ji,
Ravikar ji
उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ , धन्यवाद
Virendra ji
yah bade bhaayee ke liye chhote bhaayee kee udaar bhaavana hai.
bhavnayen sweekar hain,saath hee aashirwad bhee ki aapaka 'VRINDAVAN'saaree duniya men sugandh failaye.
Pravin pandey ji,
S.M.Habeeb(sanjay)ji
रचना की सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ , धन्यवाद
न जाने क्या जला , कहाँ , ये गंध क्यों जली-जली
न जाने कैसी राख , उड़ रही यहाँ गली-गली
सुना है कल , सियासती हुजूम था इसी शहर
उसी हुजूम ने शहर में ढाया इस कदर कहर ..
ऐसे हादसों के बाद बस यही प्रश्न रह जाते है ..न जाने क्यों ?
मार्मिक चित्रण
सही है आज यही सोचना पड़ रहा है की ये सब न जाने क्यों हो रहा है.
शुक्ल जी!
शहरयार साहब की गज़ल 'सीने में जलन' और 'आजीब सानेहाँ मुझपर गुजार गया यारो' याद हो आई!! बेहद संजीदा!!
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
Sangita ji,
Shalini ji
आप जैसे शुभचिंतकों का स्नेह और समर्थन मेरा प्रेरक भी है तो मार्गदर्शक भी , प्रशंसा का आभारी हूँ .
Lalit verma ji,
Manoj Kumar ji
जो मन में आया , लिख दिया, किसी बड़े रचनाकार से मेरी तुलना-यह आपका स्नेह है.समर्थन मेरा प्रेरक भी है तो मार्गदर्शक भी , प्रशंसा का आभारी हूँ .
न जाने क्यों?यही सवाल सबके मन में है.
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । धन्यवाद ।
kuchh sawalo ke jawab kabhi nahi milte.
sawalo par hi chot karti rachna.
प्रभावी और भाव युक्त रचना।
शुभकामनाएं आपको..............
हर एक शेर जबरदस्त बहुत खूब ...
ये घुचघुचे से आँख में भरे हुये...एक बिल्कुल ही नये शब्द से परिचित कराया.वाह !! रचना में क्या प्रवाह है.मार्मिक होने के बावजूद हम गुनगुना उठे, न जाने क्यूँ ?
bahut hi prabhavshali v marmik prstuti .........aabhar
प्रश्न ही रह जाते हैं...
मार्मिक चित्रण!
shikha varshney ji,
Prem sarovar ji,
Anamika ji,
Atul shrivastav ji
आप शुभचिंतकों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं का आभारी हूँ, धन्यवाद
Sunil Kumar ji,
Arun Nigam ji,
Rajani ji,
Anupama ji
आप शुभचिंतकों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं शुभकामनाओं का आभारी हूँ,
बहुत ही खूब लिखा है आपने.
आओ,अपने शहर का मौसम बदलें,
तुम को बदलने से पहले हम बदलें.
अच्छी रचना बधाई भाई शुक्ला जी
अच्छी रचना बधाई भाई शुक्ला जी
♥
आदरणीय श्री शुक्ल जी
सादर प्रणाम !
न जाने क्यों शहर ये आज ग़मज़दा , उदास है
न जाने कौन सी , चुभी हुई दिलों में फांस है
न जाने कौन ख़ौफ़ से , हैं लोग यूं डरे हुए
न जाने क्यों , ये घुचघुचे से आंख में भरे हुए
बहुत कमाल की नज़्म है …
बरसों पहले मैंने लिखा था
सिले होंठ , पथराई आंखें , बुझा-बुझा-सा हर दिल है
यह शहर बयाबां , जंगल-सा है , ख़ौफ़ज़दा हर महफ़िल है
रुका-रुका-सा वक़्त यहां पर , गली-गली सन्नाटा है
ज़िंदा लाशें दफ़्न घरों में , सड़कों-सड़कों क़ातिल हैं
आपकी रचना पढ़ कर , और आज दिल्ली में हुए कायरता पूर्ण धमाके के बाद मुझे अपनी नज़्म की पंक्तियां याद आ गईं …
आपकी रचनाएं कई पढ़ चुका हूं , कई बार तो बाद में तसल्ली से टिप्पणी करने के चक्कर में विस्मृत ही हो गया …
जबकि
आपके यहां कमेंट लिखने के बाद दो-तीन दफ़ा ऐसे हादसे हुए कि कमेंट पब्लिश करने से पहले मिट जाने से मूड ही चौपट हो गया … आज ऊपरवाला मेहरबां रहे … बस
… और , अंत में आपको सपरिवार
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
विशाल जी,
तुषार जी
आप शुभचिंतकों का बहुत- बहुत आभार /
राजेंद्र स्वर्णकार जी
आप के ब्लॉग पर आगमन का और सच की स्वीकारोक्ति का आभारी हूँ , धन्यवाद
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