परिंदों के घरौंदों को , उजाड़ा था तुम्हीं ने कल ,
मगर अब कह रहे हो , डाल पर पक्षी नहीं गाते।
तुम्हीं थे जिसने वर्षों तक , न दी जुम्बिश भी पैरों को ,
शिकायत किसलिए , गर दो कदम अब चल नहीं पाते ?
वो पोखर , झील , नदियाँ , ताल सारे पाटकर तुमने ,
बगीचे , पेड़ - पौधे , बाग़ सारे काटकर तुमने ,
खड़ी अट्टालिकाएं कीं , बनाए महल - चौमहले ,
मगर अब कह रहे , बाज़ार में भी फल नहीं आते।
ये कुदरत की , जो बेजा दिख रही तसवीर है सारी ,
तुम्हारी ही खुराफातों की , ये तासीर है सारी ,
वही तो काटना है पड़ रहा , बोते रहे जो कुछ ,
मगर फिर भी ,अलग फितरत से खुद को कर नहीं पाते।
- एस .एन .शुक्ल
मगर अब कह रहे हो , डाल पर पक्षी नहीं गाते।
तुम्हीं थे जिसने वर्षों तक , न दी जुम्बिश भी पैरों को ,
शिकायत किसलिए , गर दो कदम अब चल नहीं पाते ?
वो पोखर , झील , नदियाँ , ताल सारे पाटकर तुमने ,
बगीचे , पेड़ - पौधे , बाग़ सारे काटकर तुमने ,
खड़ी अट्टालिकाएं कीं , बनाए महल - चौमहले ,
मगर अब कह रहे , बाज़ार में भी फल नहीं आते।
ये कुदरत की , जो बेजा दिख रही तसवीर है सारी ,
तुम्हारी ही खुराफातों की , ये तासीर है सारी ,
वही तो काटना है पड़ रहा , बोते रहे जो कुछ ,
मगर फिर भी ,अलग फितरत से खुद को कर नहीं पाते।
- एस .एन .शुक्ल
36 comments:
बहुत खूब....
सार्थक रचना..
सादर
अनु
शुक्ल जी आज का दिन मन आनंद से भर गया क्या बात कही है आपने ...किसी भी लाइन के एक भी शब्द व्यर्थ नहीं हैं . आपने दिल को शब्द दे दिए .
आपसे मोबाईल पर चर्चा अनुसार संपर्क रमाकांत सिंह 0९८२७८८३५४१ अकलतरा छ ग
प्रकृति के संग खिलवाड़ को बहुत सुन्दर वर्णित किया है आपने .
वाह...!बहुत खूब..बहुत खूब..बहुत खूब...|
आपकी इस रचना ने हम सब के सामने एक सवाल ला खड़ा कर दिया है |
"यहाँ जो कुछ भी होता है,वो हमारी मर्जी से होता है..और उसे ना मानना भी हमारी मर्जी में शामिल है"
सादर |
सच्चाई को शब्दों में बखूबी उतारा है आपने.सार्थक प्रस्तुति .आभार
वाह बहुत खूब ,,,,,शुक्ल जी,,
वो पोखर झील नदियाँ ताल सारे पाटकर तुमने ,
बगीचे पेड़ पौधे , बाग़ सारे काटकर तुमने
खड़ी अट्टालिकाएं कीं , बनाए महल चौमहले
मगर अब कह रहे,बाज़ार में भी फल नहीं आते।
RECENT POST : गीत,
सच है जो बोया है वही तो काटा जाएगा -बहुत खूबसूरत रचना-बहुत बढ़िया शुक्ल जी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
sach ko byan karti hai ye poem.
swalon se bandhi meri post
KYUN???
http://udaari.blogspot.in
sach ko byan karti kavita
meri swalon se bandhi post
KYUN???
http://udaari.blogspot.in
Bahut hi behtreen Gazal... Jitni bhi tareef karu'n kam hai....
तुम्हारी ही खुराफातों की , ये तासीर है सारी ,
वही तो काटना है पड़ रहा , बोते रहे जो कुछ ,
मगर फिर भी ,अलग फितरत से खुद को कर नहीं पाते। ...
बोओगे बबूल .... आम कहाँ से खाओगे ....
सार्थक पोस्ट ~~~ एक अच्छी सीख देती रचना !!
आदमी ही खुद अपना दुश्मन बना बैठा है...और किसी का दोष तो नहीं है...
बढ़िया रचना |
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काव्य का संसार
बहुत ही गहरी बातें,
काट जिये जो पेड़, कहाँ से सुख दे पायेंगे।
बहुत खूब महोदय ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति ।।
फितरत चालों की रही, सालों का है ऐब ।
शोहरत की खातिर खुली, षड्यंत्रों की लैब ।
षड्यंत्रों की लैब , करे नीलामी भारी ।
खाय दलाली ढेर, उजाड़े प्राकृत सारी ।
शुद्ध हवा फल फूल, धूप की बाकी हसरत ।
हरकत ऊल-जुलूल, बदल ले अपनी फितरत ।।
ये कुदरत की जो बेजा दिख रही तस्वीर सारी
तुम्हारी ही खुराफातों की यह तासीर है साती "
बहुत भावपूर्ण रचना |
आशा
बहुत अच्छी लगी यह नज़्म।
वाह, सुन्दर शेर
वही तो काटना है पड़ रहा , बोते रहे जो कुछ ,
मगर फिर भी ,अलग फितरत से खुद को कर नहीं पाते।
फितरत तो सच ही बदलती नहीं. सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.
बहुत खूब....प्रकृति के साथ हो रहे अन्याय को बड़ी खूबसूरती से कविता में ढाला है आपने....बधाई
तकलीफ़देह सच्चाई ....
शुभकामनायें!
Anu ji,
Ramakant Singh ji,
Mantu Kumar ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार.
Shalini ji,
Dheerendra ji,
Aditipoonam ji,
आप मित्रों से इसी स्नेह की अपेक्षा थी, धन्यवाद.
Roopachandr Shastri ji,
इस स्नेह का आभारी हूँ.
Udata panchhi,
India darpan,
स्नेह मिला, आभारी हूँ.
Shah Navaj ji,
Vibha ji,
Vanbhatt ji,
आपका समर्थन पाकर सार्थक हुआ सृजन, आभार.
Ravikar ji,
Asha Saxena ji,
Devendra pandey ji,
आपके उत्साहवर्धन का कृतज्ञ हूँ.
Onkar ji,
Rachana Dixit ji,
स्नेह मिला, आभारी हूँ.
Rashmi ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का आभारी हूँ.
Ashok Ahuja ji,
आपका समर्थन पाकर सार्थक हुआ सृजन, आभार.
कितनी सच्ची ..कितनी सुन्दर रचना......इसपर भी तो लोग नहीं चेत जाते ......अलग फितरत से खद को नहीं कर पाते
मन की गहराइयों को छूती उद्वेलित करती पोस्ट ,बधाई शानदार लेखन के लिए
Saras ji,
आभार आपके स्नेह का.
Sangita ji,
ब्लॉग पर आगमन का स्वागत और शुभकामनाओं का आभार.
बढ़िया सन्देश , बधाई !
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