हकीकत को तेरी इक जिद ने अफसाना बना डाला /
तेरी मासूमियत ने , मुझको दीवाना बना डाला /
ये दुनिया भी तेरी ही हमनवा , दुश्मन हमारी है ,
तुझे रोशन शमा ,तो मुझको परवाना बना डाला /
तू समझे या न समझे , अपने दिल को तेरी फुरकत में ,
हमेशा के लिए मैंने , सनमखाना बना डाला /
तेरी ही याद की वर्जिश , सुबह से शब् तलक हर दम ,
ये दिल अब दिल कहाँ है, दिल को जिमखाना बना डाला /
मैं फाकेमस्त हूँ , मुझको ज़मीं ज़र की ज़रुरत क्या ,
तेरी उल्फत की दौलत ने ही , शाहाना बना डाला /
- एस.एन.शुक्ल
16 comments:
बहुत बढ़िया गज़ल ....
सुन्दर शेर ...
सादर
अनु
sundar rachana hai....
बड़ी अल्हड़ गजल है शुक्ला जी ...
"तू समझे या ना समझे, अपने दिल को तेरी फुरकत में ...
हमेशा के लिए मैंने सनाम्खाना बना डाला " ... वाह !
वाह ,,,,बहुत बेहतरीन गजल,,,,,बधाई शुक्ल जी
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उल्फत ऐसी ही होती है..सुंदर रचना !
बेहतरीन रचना..
वाह बेहतरीन ग़ज़ल बधाई आपको
Anu ji,
स्नेह मिला , आभारी हूँ .
Manish ji,
Pradeep ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाओं का आभार .
Dheerendra ji,
Anita ji,
आपसे इसी स्नेह की अपेक्षा थी , आभार .
Pravin pandey ji,
Rajesh Kumari ji,
आभार आपकी शुभकामनाओं का .
.
बहुत सुंदर..वाह..
Amrita Tanmay ji,
स्नेह मिला , आभारी हूँ.
वाह....क्या बात है, हरेक शेर लाजवाब है|
बहुत खूब:)
Shalini ji,
Uday ji,
ब्लॉग पर आगमन और समर्थन का आभार.
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