राहे -गुनाह चल के , बता तुझको मिला क्या ,
छलनी में गाय दुह के ,मुकद्दर का गिला क्या ?
इंसान होके कर रहा , इंसानियत का खूं ,
अन्दर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ?
जितना है , उससे और भी ज्यादा की आरजू ,
इंसान की हवस की , यहाँ कोई हद नहीं ,
इस चंद - रोजा ज़िंदगी के वास्ते फरेब ,
दुनिया का किया तूने फतह , कोई किला क्या ?
हर दिल में है निशातो - मसर्रत की तश्नगी ,
ता ना -ए- खुदसरी से , कोई गुल भी खिला क्या ?
- एस . एन .शुक्ल
निशातो -मसर्रत = हर्ष और आनंद
तश्नगी = प्यास
ता ना - ए - खुदसरी = उद्दंडता
46 comments:
वाह..
बेहतरीन गज़ल......
सादर
अनु
हर दिल में है निशातो - मसर्रत की तश्नगी ,
ता ना -ए- खुदसरी से , कोई गुल भी खिला क्या ?
उम्दा सोच की उत्तम रचना !!
खुबसूरत बातें खुबसूरत दिलों की उपज होती है ये आज हमने जाना ये आपने सिखलाई हमें .......
Bahut khub....bahut hi badhia aur satik likhte hai ap....umda
Bahut khub....bahut hi badhia aur satik likhte hai ap....umda
Bohot sundar. . .
Very beautifully penned Shuklaji and a sincere thanks for following my blog!
बेहतरीन गज़ल
शुक्ल जी, क्या कहूँ आपकी गजल पढ़कर आनन्द आ गया।
भावपूर्ण और अनुभव जनित
आपके इस बेहतरीन गजल के लिए बहुत२ बधाई,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
nice.प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े
इंसान होके कर रहा , इंसानियत का खूं ,
अन्दर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ?
अच्छी लगी ये पंक्तियां.
राहे गुनाह चलके ,बता तुझको मिला क्या ।
बहुत उम्दा ।
राहे गुनाह चलके ,बता तुझको मिला क्या ।
बहुत उम्दा ।
औरों के किले फतह करते करते अपनी जंग हार जाते हैं हम।
राहे -गुनाह चल के , बता तुझको मिला क्या ,
छलनी में गाय दुह के ,मुकद्दर का गिला क्या ?
बहुत शानदार.....उम्दा ग़ज़ल ......
बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
Anu ji,
Vibha ji,
Ramakant ji,
यह स्नेह निरंतर मिलता रहे, यही आकांक्षा है.
Ana ji,
Noopur ji,
Rahul Bhatiya ji,
आपके ब्लॉग पर प्रथम बार आगमन और शुभकामनाओं का आभार.
Sangita ji,
Achary Parashuram ji,
आपका स्नेह पाकर सार्थक हुयी रचना.
Aravind Misra ji,
Dheerendra ji,
यह स्नेह निरंतर मिलता रहे, यही आकांक्षा है.
Shalini ji,
Abhishek ji,
स्नेह मिला , आभार.
Anand Vikram ji,
आपके ब्लॉग पर प्रथम बार आगमन और
आपके स्नेह का आभारी हूँ.
Pravin pandey ji,
Karuna Saxena ji,
Shanti Garg ji,
आप मित्रों के स्नेह का बहुत - बहुत आभार.
Beautifully written, Shuklaji. Its absolutely elegant poetry.
Beautifully written, Shuklaji. Its absolutely elegant poetry.
ये तो सचमुच गज़ल है
ये तो सचमुच गज़ल है
ये तो सचमुच गज़ल है
अंदर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ......
बहुत बढ़िया और आज का हालत पे सटीक बैठती रचना , आभार
Behatareen....
Bahot acchi rachna hai...
Waah....
Uttam....
बहेतरीन प्रस्तुति खूबसूरत संग्रह
बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही आपने
क्या खूबसूरत गजल कही आपने
एक से एक उम्दा शेर। बहुत ही खूबसूरत गज़ल।
"हर दिल में है निशातो - मसर्रत की तश्नगी ,
ता ना -ए- खुदसरी से , कोई गुल भी खिला क्या ?
बधाई !
काबिल-ए-तारीफ गज़ल। जिसकी पंक्तियों में एक संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति मुखरित होती है।
स्वागत है।
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
इंसान होके कर रहा इंसानियत का खून
अन्दर के तेरे आदमी का दिल न हिला क्या?
बहुत खूबसूरत ! आभार .
इंसान होके कर रहा , इंसानियत का खूं ,
अन्दर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ?
....लाजवाब! हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू जाता है... बेहतरीन प्रस्तुति...
Rachna ji,
Alka ji,
आभार आपके स्नेह का ,ब्लॉग पर आगमन का और आपके समर्थन का.
Rajpoot ji,
Sanju ji,
Rajesh vaishnav ji,
आभार आपके ब्लॉग पर आगमन का और आपके समर्थन का.
Aditi poonam ji,
Sushila ji,
आपके समर्थन का
आभारी हूँ .
Brijesh singh ji,
Prasanna vadan ji,
आप मित्रों का स्नेह मिला, आभारी हूँ.
Meeta pant ji,
Kailash sharma ji,
आपकी शुभकामनाएं मिलीं, आभार.
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