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Sunday, August 12, 2012

(162) मुकद्दर का गिला क्या


राहे -गुनाह चल के , बता  तुझको  मिला क्या  ,
छलनी में गाय दुह के ,मुकद्दर का गिला क्या ?

इंसान  होके  कर  रहा , इंसानियत  का  खूं  ,
अन्दर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ?

जितना है , उससे और भी ज्यादा की आरजू ,
इंसान  की  हवस की ,  यहाँ  कोई  हद नहीं ,

इस  चंद - रोजा  ज़िंदगी  के  वास्ते  फरेब ,
दुनिया का किया तूने फतह , कोई किला क्या ?

हर दिल  में  है  निशातो - मसर्रत  की  तश्नगी ,
ता ना -ए- खुदसरी से , कोई गुल भी खिला क्या ?

                                        - एस . एन .शुक्ल

निशातो -मसर्रत = हर्ष और आनंद
तश्नगी = प्यास
ता ना - ए - खुदसरी = उद्दंडता 

46 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह..
बेहतरीन गज़ल......

सादर
अनु

विभा रानी श्रीवास्तव said...

हर दिल में है निशातो - मसर्रत की तश्नगी ,
ता ना -ए- खुदसरी से , कोई गुल भी खिला क्या ?
उम्दा सोच की उत्तम रचना !!

Ramakant Singh said...

खुबसूरत बातें खुबसूरत दिलों की उपज होती है ये आज हमने जाना ये आपने सिखलाई हमें .......

Anamikaghatak said...

Bahut khub....bahut hi badhia aur satik likhte hai ap....umda

Anamikaghatak said...

Bahut khub....bahut hi badhia aur satik likhte hai ap....umda

Noopur said...

Bohot sundar. . .

Rahul Bhatia said...

Very beautifully penned Shuklaji and a sincere thanks for following my blog!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बेहतरीन गज़ल

आचार्य परशुराम राय said...

शुक्ल जी, क्या कहूँ आपकी गजल पढ़कर आनन्द आ गया।

Arvind Mishra said...

भावपूर्ण और अनुभव जनित

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आपके इस बेहतरीन गजल के लिए बहुत२ बधाई,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

Shalini kaushik said...

nice.प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े

अभिषेक आर्जव said...

इंसान होके कर रहा , इंसानियत का खूं ,
अन्दर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ?

अच्छी लगी ये पंक्तियां.

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

राहे गुनाह चलके ,बता तुझको मिला क्या ।
बहुत उम्दा ।

आनन्द विक्रम त्रिपाठी said...

राहे गुनाह चलके ,बता तुझको मिला क्या ।
बहुत उम्दा ।

प्रवीण पाण्डेय said...

औरों के किले फतह करते करते अपनी जंग हार जाते हैं हम।

Anonymous said...

राहे -गुनाह चल के , बता तुझको मिला क्या ,
छलनी में गाय दुह के ,मुकद्दर का गिला क्या ?
बहुत शानदार.....उम्दा ग़ज़ल ......

Shanti Garg said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग

जीवन विचार
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

S.N SHUKLA said...

Anu ji,
Vibha ji,
Ramakant ji,

यह स्नेह निरंतर मिलता रहे, यही आकांक्षा है.

S.N SHUKLA said...

Ana ji,
Noopur ji,
Rahul Bhatiya ji,
आपके ब्लॉग पर प्रथम बार आगमन और शुभकामनाओं का आभार.

S.N SHUKLA said...

Sangita ji,
Achary Parashuram ji,

आपका स्नेह पाकर सार्थक हुयी रचना.

S.N SHUKLA said...

Aravind Misra ji,
Dheerendra ji,

यह स्नेह निरंतर मिलता रहे, यही आकांक्षा है.

S.N SHUKLA said...

Shalini ji,
Abhishek ji,

स्नेह मिला , आभार.

S.N SHUKLA said...

Anand Vikram ji,
आपके ब्लॉग पर प्रथम बार आगमन और
आपके स्नेह का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Pravin pandey ji,
Karuna Saxena ji,
Shanti Garg ji,

आप मित्रों के स्नेह का बहुत - बहुत आभार.

Rachna Chhabria said...

Beautifully written, Shuklaji. Its absolutely elegant poetry.

Rachna Chhabria said...

Beautifully written, Shuklaji. Its absolutely elegant poetry.

alka mishra said...

ये तो सचमुच गज़ल है

alka mishra said...

ये तो सचमुच गज़ल है

alka mishra said...

ये तो सचमुच गज़ल है

Rajput said...

अंदर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ......

बहुत बढ़िया और आज का हालत पे सटीक बैठती रचना , आभार

Rajesh Vaishnav said...

Behatareen....
Bahot acchi rachna hai...

Rajesh Vaishnav said...

Waah....
Uttam....

Dev said...

बहेतरीन प्रस्तुति खूबसूरत संग्रह

Aditi Poonam said...

बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही आपने

Aditi Poonam said...

क्या खूबसूरत गजल कही आपने

sushila said...

एक से एक उम्दा शेर। बहुत ही खूबसूरत गज़ल।

"हर दिल में है निशातो - मसर्रत की तश्नगी ,
ता ना -ए- खुदसरी से , कोई गुल भी खिला क्या ?

बधाई !

वृजेश सिंह said...

काबिल-ए-तारीफ गज़ल। जिसकी पंक्तियों में एक संवेदनशील मन की अभिव्यक्ति मुखरित होती है।
स्वागत है।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

Meeta Pant said...

इंसान होके कर रहा इंसानियत का खून
अन्दर के तेरे आदमी का दिल न हिला क्या?

बहुत खूबसूरत ! आभार .

Kailash Sharma said...

इंसान होके कर रहा , इंसानियत का खूं ,
अन्दर के तेरे आदमी का , दिल न हिला क्या ?

....लाजवाब! हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू जाता है... बेहतरीन प्रस्तुति...

S.N SHUKLA said...

Rachna ji,
Alka ji,
आभार आपके स्नेह का ,ब्लॉग पर आगमन का और आपके समर्थन का.

S.N SHUKLA said...

Rajpoot ji,
Sanju ji,
Rajesh vaishnav ji,
आभार आपके ब्लॉग पर आगमन का और आपके समर्थन का.

S.N SHUKLA said...

Aditi poonam ji,
Sushila ji,
आपके समर्थन का
आभारी हूँ .

S.N SHUKLA said...

Brijesh singh ji,
Prasanna vadan ji,

आप मित्रों का स्नेह मिला, आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Meeta pant ji,
Kailash sharma ji,

आपकी शुभकामनाएं मिलीं, आभार.