जो मेहनत और हिकमत को , इबादत मान लेता है /
उसे मिलता है वह सब कुछ , जो चाहत ठान लेता है /
तवंगर भी कदमबोशी को तब मज़बूर होता है ,
वो फाकेमस्त ! जिस दम अपनी ताकत जान लेता है /
बदल जाती हैं हाथों की लकीरें , और किश्मत भी ,
बशर जब जीतने की जिद , को मन में ठान लेता है /
मचलता दिल , मगर फिर भी वो बच्चा जिद नहीं करता ,
जो अपने बाप की , माली हकीकत जान लेता है /
ठहर जाती हैं सारी सलवटें मौजों की बस उस दम ,
समंदर जिस समय , सोने को चादर तान लेता है /
खुदा भी चाहकर , उसके लिए कुछ कर नहीं सकता ,
बशर नाकामियों को जब मुकद्दर मान लेता है /
- एस. एन. शुक्ल
उसे मिलता है वह सब कुछ , जो चाहत ठान लेता है /
तवंगर भी कदमबोशी को तब मज़बूर होता है ,
वो फाकेमस्त ! जिस दम अपनी ताकत जान लेता है /
बदल जाती हैं हाथों की लकीरें , और किश्मत भी ,
बशर जब जीतने की जिद , को मन में ठान लेता है /
मचलता दिल , मगर फिर भी वो बच्चा जिद नहीं करता ,
जो अपने बाप की , माली हकीकत जान लेता है /
ठहर जाती हैं सारी सलवटें मौजों की बस उस दम ,
समंदर जिस समय , सोने को चादर तान लेता है /
खुदा भी चाहकर , उसके लिए कुछ कर नहीं सकता ,
बशर नाकामियों को जब मुकद्दर मान लेता है /
- एस. एन. शुक्ल
29 comments:
खुदा भी चाहकर , उसके लिए कुछ कर नहीं सकता ,
बशर नाकामियों को जब मुकद्दर मान लेता है/
वाह शुक्ला जी , बहुत ही लाजवाब रचना,
हर पंक्ति में एक गहन अर्थ समाया है... बहुत सुन्दर
मचलता दिल , मगर फिर भी वो बच्चा जिद नहीं करता ,
जो अपने बाप की , माली हकीकत जान लेता है /
बहुत खूब ... बढ़िया गज़ल
खुदा भी चाहकर ,उसके लिए कुछ कर नहीं सकता ,
बशर नाकामियों को जब मुकद्दर मान लेता है,,,
उत्कृष्ट लाजबाब प्रस्तुति,,,,,,
रक्षाबँधन की हार्दिक बधाई,शुभकामनाए,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
बहुत बढ़िया सर....
सुन्दर प्रस्तुति...
सादर
अनु
Badal jati hain hatho ki lakeeren
Basar jab jeetne ki thaan leta hai...BAHOOT KHUB kaha .Olympics mai aap top 3 positions k competition k mai unke chehre pe dikh jati hai kisne jyada jeetne ki thaani hai...
आपने सही कहा ...जिंदगी के लम्हों को जीने का खुबसूरत अंदाज़
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ..
अपने पर विश्वास कहाँ से खो दें..
इच्छाशक्ति की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत है... बेहतरीन रचना
बदल जाती हैं हाथों की लकीरें , और किश्मत भी ,
बशर जब जीतने की जिद , को मन में ठान लेता है /
वाह: बहुत सुन्दर गजल..
बेहतरीन ग़ज़ल ...
एक एक शेर एक एक सत्य को बयां करता हुआ
शुक्लजी,
आपकी टिपण्णी पढ़ी थी ! ब्लॉग-मित्रता के लिए भी आभार व्यक्त करना चाहता हूँ ! आपके द्वार पर आ तो गया हूँ, लेकिन आप्यें थोड़ा अवकाश लेकर पढूंगा और तब अपना मंतव्य भेजूंगा !!
सप्रीत--आ.व्.ओझा.
शुक्लजी,
आपकी टिपण्णी पढ़ी थी ! ब्लॉग-मित्रता के लिए भी आभार व्यक्त करना चाहता हूँ ! आपके द्वार पर आ तो गया हूँ, लेकिन आप्यें थोड़ा अवकाश लेकर पढूंगा और तब अपना मंतव्य भेजूंगा !!
सप्रीत--आ.व्.ओझा.
Oh my god.. dont have words to say.. Awesome lines.. I actualy wait for your blog to see if there is something new... keep writing... I loved this one.
बहुत सुंदर जज़्बात इस खूबसूरत गज़ल द्वारा.
बहुत.
Kumar ji,
Sangita ji,
Dheerendra ji,
आप मित्रों से इसी स्नेह की अपेक्षा रही है .
Anu ji,
Ramakant ji,
Sunil ji,
आभार आपके स्नेह और समर्थन का .
Rishav Verma ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और स्नेह का आभारी हूँ.
Pravin pandey ji,
Lokendra Singh ji,
Maheshwari kaneri ji,
आपकी शुभकामनाओं का आभारी हूँ .
Anjani kumar ji,
Rachana Dixit ji,
आभार इस स्नेह का .
A. B. Ojha ji,
Sniel Shekhar ji,
ब्लॉग पर आगमन और शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ .
खुदा भी चाहकर ,उसके लिए कुछ कर नहीं सकता ,
बशर नाकामियों को जब मुकद्दर मान लेता है,,,
वाह!बहुत ही उम्दा शेर कहा है!
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.
वाह ... लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ...
गहरा मर्म लिए ... बधाई ...
Alpana verma ji,
India Darpan ji,
आपका स्नेह मिला , बहुत- बहुत आभार.
Shanti Garg ji,
Digamber Naswa ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Sir,aabhari toh mai khuda ka hu ki aapko padhne ka mujhe mauka diya
:)
Sir,aabhari toh mai khuda ka hu ki aapko padhne ka mujhe mauka diya
:)
Rishav verma ji,
यह स्नेह निरंतर मिलता रहे, यही आकांक्षा है.
खुदा भी चाहकर , उसके लिए कुछ कर नहीं सकता ,
बशर नाकामियों को जब मुकद्दर मान लेता है/
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
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