हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
ये किसी के नहीं हमदर्द , डरा कर इनसे /
गोलियाँ इनको चलाने से भी गुरेज नहीं ,
भूखे- नंगों पे लाठियों से भी परहेज नहीं ,
ज़ुल्म की हद से गुजरते हैं अपनी शेखी में ,
वास्ते इनके कोई कायदे - बंधेज नहीं ,
ये निगाहें हैं बड़ी सर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /सड़क पे इनको उतरते हुए डर लगता है,
भीड़ के बीच गुजरते हुए डर लगता है,
ये हैं संगीनों के साये में भी दहशत से भरे,
घर से बाहर भी निकलते हुए डर लगता है ,
और कहते हैं खुद को मर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
आम इनसान को जाहिल ही समझते हैं ये ,
सारी दुनिया की अकल खुद में समझते हैं ये ,
मुखालफ़त क्या , मशविरा भी गवारा न इन्हें ,
अलहदा सबसे नस्ल खुद की समझते हैं ये ,
इनको दुनिया का नहीं दर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
कुर्सियों के लिए , कुत्तों की तरह लड़ते हैं ,
कुर्सियाँ पा के मगर , शेर सा अकड़ते हैं ,
चलाते तब हैं ये जंगल का कायदा - क़ानून ,
बाप का माल समझ , खुद का ही घर भरते हैं ,
हमाम में हैं ये बेपर्द , डरा कर इनसे /
हुक्मरां अब भी हैं बेदर्द , डरा कर इनसे /
- एस. एन. शुक्ल
44 comments:
shaandar likha hai aur bilkul sach likha hai.
..आज के हालात बयां करती ग़ज़ल .....बहुत बढ़िया ...
असुंदर सच...
सुन्दर रचना....
सादर..
जब आहें जली हैं,
दूरी भली है..
शुक्ला जी कमाल की रचना है आपकी...सच्चाई को बखूबी बयां किया है आपने हर पंक्ति में...बधाई स्वीकारें
नीरज
aapke pas shabd bhandaar aseemit hai...hatprabh hoti hu...ye soch kar apki rachnao ko padhte hue.
राजनीती ही राजनीती चारों ओर..
kalamdaan.blogspot.com
सच ही कहा है.लाजवाब!!!
//घर से बाहर भी निकलते हुए भी डर लगता है,
और कहते हैं ख़ुद को मर्द, डरा कर इनसे..
mazaa aa gaya sir.. kamaal ekdum :)
Rajesh kumari ji,
Anupama ji,
आपके प्रशंसा भरे शब्दों से मुझे सृजन की प्रेरणा मिलाती है, आभार.
Vidya ji,
आपका स्नेह मिला , कृतज्ञ हूँ.
Pravin pandey ji,
Neeraj Goswami ji,
आपकी उदारमना सराहना का बहुत- बहुत आभार.
Anamika ji,
शायद कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर दी आपने , आभारी हूँ.
Ritu ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और सकारात्मक समर्थन का आभारी हूँ.
Rachana Dixit ji,
Aditya ji,
आपके सकारात्मक समर्थन का आभारी हूँ.
हुक्मरानों से अब डर के सिवा मिलता ही क्या है।
अच्छी रचना।
रोशनाई नहीं, तेज़ाब से लिखा नगमा है ये.. परमात्मा आपके कलम की आग बरकरार रखे!!
प्रासंगिक कविता। बस एक बात कहना चाहूंगी। हुक्मरानों में सिर्फ मर्द ही नहीं हैं.. इसलिए 'और कहते हैं खुद को मर्द' थोड़ा सा खटका। बाकी कविता बहुत सुंदर है।
क्या तंज किया है आपने इन हुक्मरानों पर! सच है ये संगीन के साये में भी डरते हैं।
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना!
खूबसूरत-लाजवाब प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई
जय जय सुभाष !
सम-सामयिक प्रस्तुति बहुत अच्छी है।
Mahendra verma ji,
Salil verma ji,
आपका स्नेहाशीष मिला आभार.
Deepika ji,
आपके ब्लॉग पर शुभागमन और समर्थन का आभारी हूँ.
Sushila ji,
Nagesh pandey ji,
आपका स्नेह पाकर सार्थक हुयी रचना.
Sanjay ji,
Nisha ji,
आभार आपकी सार्थक प्रतिक्रया का.
शुक्ल जी, वर्तमान परिवेश के सच को प्रस्तुत करती हुई, इस अद्भुत रचना के लिए बधाइयाँ।
Rosanne Cash (एक अमेरिकेन गायक, संगीतकार, एवं लेखक ) ने कहा है -
“The key to change... is to let go of fear.”
पर अपने डर को स्वीकार करे बिना उसका सामना कर पाने की परिकल्पना व्यर्थ है ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,भावपूर्ण आज के हालात की अच्छी रचना,..
WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
सुन्दर, सार्थक एवं सटीक भाव.....
कृपया इसे भी पढ़े-
क्या यही गणतंत्र है
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 28/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
This is real..thanks for giving it a voice with your words...This is voice of so many suppressed and depressed individuals..like a Mirror to our Society
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
बहुत ही बढ़िया ।
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
कुत्ते से शेर तक की यात्रा बड़ी हास्यास्पद होती है ... अच्छी रचना
रंगीन ब्लॉग संगीन कविता..दोनो आकर्षित करते हैं।
कुर्सियों के लिए , कुत्तों की तरह लड़ते हैं ,
कुर्सियाँ पा के मगर , शेर सा अकड़ते हैं ,
चलाते तब हैं ये जंगल का कायदा - क़ानून ,
बाप का माल समझ , खुद का ही घर भरते हैं ,
खरी खरी कहती सार्थक रचना
Atyant Satya aur Marmik
Kashish Shukla ji,
Dheerendra ji,
आभार आप मित्रों का उत्साहवर्धन के लिए.
Dinesh Agrawal ji,
आपके ब्लॉग पर पधारने और समर्थन का ह्रदय से आभारी हूँ..
Anupama ji,
Ashu ji,
Sada ji,
आपसे इसी स्नेह की अपेक्षा थी,धन्यवाद.
स्नेह मिला, आभार.
Yashawant Mathur ji,
Rashmi prabha ji,
Devendra pandey ji,
स्नेह मिला, आभार.
Sangita ji,
आपका स्नेहिल समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना,आभार.
Sumant ji,
ब्लॉग पर पधारने और समर्थन का आभारी हूँ..
काबिल-ए-तारीफ....
Poonam ji,
आभारी हूँ आपके स्नेहिल समर्थन का.
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