मन में पाले भरम, उसका होगा करम ,
बस भटकते रहे , एक आशा लिए /
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
ठोकरें ही मिलीं, हम जिधर भी गए ,
फिर भी हर बार रस्ते तलाशे नए ,
खाइयों को रहे पाटते उम्र भर,
उम्र भर संग खुद ही तराशा किये /
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
वह सितमगर है तो मैं भी गमख्वार हूँ ,
क्या करूँ , अपनी आदत से लाचार हूँ ,
उसकी नफ़रत को , चाहत में दूंगा बदल,
क्या जिए , गर जिए मन निराशा लिए /
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
- एस. एन . शुक्ल
बस भटकते रहे , एक आशा लिए /
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
ठोकरें ही मिलीं, हम जिधर भी गए ,
फिर भी हर बार रस्ते तलाशे नए ,
खाइयों को रहे पाटते उम्र भर,
उम्र भर संग खुद ही तराशा किये /
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
वह सितमगर है तो मैं भी गमख्वार हूँ ,
क्या करूँ , अपनी आदत से लाचार हूँ ,
उसकी नफ़रत को , चाहत में दूंगा बदल,
क्या जिए , गर जिए मन निराशा लिए /
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
- एस. एन . शुक्ल
44 comments:
वाह !! 'मंजिलें' तलाशने वालों को ही मिलती हैं.
बहुत बढ़िया...
जिंदगी की तरफ आपका नजरिया भी और ये अभिव्यक्ति भी..
सादर.
शुक्ल जी नमस्ते ..
जीवटता और आशाओं को शब्दों में खूब पिरोया है आपने ..
मकर सक्रांति पर्व की अग्रिम शुभकामनाएं .... प्रदीप
अच्छी कविता.. निराशा के भावों के बीच उनसे लड़ने का सन्देश भी देती है!!
यूँ ही हौसला रहे .. चलना ही जिंदगी है .. अच्छी प्रस्तुति
//ठोकरें ही मिली, हम जिधर भी गए,
फिर भी हर बार, रास्ते तलाशे नए,
//टूट जाऊं मग८अर झुक ना पाऊंगा मैं,
अपनी आदत है यह, रुक ना पाऊंगा मैं,
क्या बात है सर, मज़ा आ गया.. लाजवाब रचना..
कभी वक़्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.. आशा करता हूं आपको पसंद आएगा..
palchhin-aditya.blogsopt.com
जब उसके अस्तित्व पर बह्रोसा है तो इतनी निराशा क्यों!! कविता बहुत अच्छी है!!
मंजिलों ने सीख ली क्यूं, लुकने छिपने की अदा
sunder prastuti.
खुशी से बढ़कर पौष्टिक खुराक और कोई नहीं है। दूसरों को खुशी देना सबसे बड़ा पुण्य का काम है।
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
रिश्ते- नातों के फैले बियाबान में,
हम सदा मंजिलों को तलाशा किये /
बन्दगी की पहली शर्त है झुकना... और झुकना जो सीख गया मंजिल सामने ही है..बहुत सुंदर कविता!
Kewal joshi ji,
Vidya ji,
Pradeep ji,
आभारी हूँ आपके ब्लॉग पर आगमन और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए.
Lalit verma ji,
Sangita ji,
आप शुभचिंतकों का उत्साहवर्धन ही मेरा मार्गदर्शक है.
Aditya ji,
Alok ji,
आपकी शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार, धन्यवाद.
Pravin pandey ji,
Anamika ji,
Manoj ji,
आप मित्रों कास्नेह मिला, कृतार्थ हुयी रचना.
बहुत सुंदर
क्या कहने
Wah! Kya baat hai!
bahut hi sundar post....shubhakamnaye
वाह: बहुत सुन्दर मंजिल हिम्मत वालो को ही मिलती है...
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
bahut hi sundar aur utkrist rachana;;;
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
bahut hi sundar aur utkrist rachana;;;
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
bahut hi sundar aur utkrist rachana;;;
टूट जाऊँ मगर झुक न पाऊँगा मैं,
अपनी आदत है यह , रुक न पाऊँगा मैं,
बंदगी तब तलक, जब तलक ज़िंदगी ,
फ़ायदा बेवजह क्या तमाशा किये ?
bahut hi sundar aur utkrist rachana;;;
बस !चलते ही जाना है ,रुकना नहीं है.
bahut sundar abhivyakti, shubhkaamnaayen.
वह सितमगर है तो मैं भी गमख्वार हूँ ,
क्या करूँ , अपनी आदत से लाचार हूँ ,
उसकी नफ़रत को , चाहत में दूंगा बदल,
बहुत खूब लिखा है महाशय आपने | आभार |
बहुत सुन्दर कहा--
’अनुबन्धों के जग में अब क्या,
सम्बन्धों की बात करें’
Mahendra shrivastav ji,
K. Shama ji,
aap shubhachintakon kaa sneh milaa, bahut- bahut aabhaar.
Ana ji,
Maheshwari kaneri ji,
आपका रचना को आशीर्वाद मिला, यह अनुकम्पा सदैव बनी रहे.
जीतेन्द्र गुप्ता जी
एक ही रचना पर आपकी कई प्रतिक्रियाएं मिलीं, किन शब्दों में आभार व्यक्त करें , यह स्नेह सदैव मिलता रहे.
sIKTA JI,
स्नेह मिला , बहुत - बहुत आभार.
Pradeep ji,
SHYAM GUPTA JI,
आपका रचना को आशीर्वाद मिला, यह अनुकम्पा सदैव बनी रहे.
बहुत सुन्दर रचना!
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपकी कविता पढ़ी अच्छी लगी, मकर संक्राति की शुभकामनाओ के साथ .आभार .
SHASTRI JI,
NAIR JI,
Apakee shubhakaamanayen mileen, bahut- bahut aabhar.
bahut sundar
bahut sundar
MANOJ JI,
आपका स्नेहाशीष मिला, आभार, धन्यवाद.
बहुत ही मोहम और रोचक शैली है आपकी
बहुत ही मोहम और रोचक शैली है आपकी
बहुत ही मोहम और रोचक शैली है आपकी
बहुत ही मोहम और रोचक शैली है आपकी
बहुत ही मोहम और रोचक शैली है आपकी
Ramesh sharma ji,
आपके स्नेह और शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार .
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