फिर वही कहानी बार- बार , फिर वही नाटकों सा मंचन ,
फिर से चुनाव, फिर से प्रपंच , दर- दर नेताओं का नर्तन /
फिर स्वानों जैसी गुर्राहट , फिर कौवों जैसी काँव - काँव ,
फिर सच को झूठ , झूठ को सच , साबित करने के पेच- दाँव /
फिर इश्तहार, बैनर - पोस्टर, फिर रैली, सभा, जुलूस बढ़े ,
फिर गाँव- गली में गूम रहे , जो सुविधाओं में पले - बढ़े /
फिर रंगे सियारों के चेहरे , उनके वे लग्गू - पिछलग्गू ,
फिर उम्मीदों से ताक रहे , गोबरे, घुरहू, पेमन, खग्गू /
फिर छल- प्रपंच, फिर जोड़ - तोड़ , फिर जाति- धर्म का गुणा- भाग ,
फिर अपने स्वार्थ सिद्ध करने हित , वैमनष्य की वही आग /
फिर अय्यारी - मक्कारी के लटके- झटके , फिर सीप - साप ,
फिर वादों , नारों और घोषणाओं का बस मिथ्या प्रलाप /
फिर निर्दल , दल , दलबल , दलदल , फिर भांति- भांति के रचे स्वांग ,
फिर एक - दूसरे प्रतिद्वंदी की , खीच रहे हैं सभी टाँग /
फिर खुद को सच्चा जनसेवक , साबित करने की वही होड़ ,
फिर एक- दूसरे के खेमे में , नकबजनी , फिर तोड़ - फोड़ /
फिर राजनीति के सौदागर , पल- पल में बदल रहे पाले ,
फिर वह ही शतरंजी बिशात , फिर विषधर नाग वही काले /
फिर वही कहानी बार- बार , फिर जन- गण से विश्वासघात ,
फिर आम आदमी की , आशाओं पर होगा उल्का प्रपात /
आखिर कब तक , इस मक्कारी - अय्यारी को झेले जनता ?
आखिर कब तक , इन नटवरलालों के हाथों खेले जनता ?
अब जाति - धर्म की राजनीति , अब दल वाली निष्ठा छोड़ो ,
फिर राष्ट्रधर्म को अपनाओ , नव गति दो , राष्ट्र दिशा मोड़ो /
- एस.एन . शुक्ल
फिर से चुनाव, फिर से प्रपंच , दर- दर नेताओं का नर्तन /
फिर स्वानों जैसी गुर्राहट , फिर कौवों जैसी काँव - काँव ,
फिर सच को झूठ , झूठ को सच , साबित करने के पेच- दाँव /
फिर इश्तहार, बैनर - पोस्टर, फिर रैली, सभा, जुलूस बढ़े ,
फिर गाँव- गली में गूम रहे , जो सुविधाओं में पले - बढ़े /
फिर रंगे सियारों के चेहरे , उनके वे लग्गू - पिछलग्गू ,
फिर उम्मीदों से ताक रहे , गोबरे, घुरहू, पेमन, खग्गू /
फिर छल- प्रपंच, फिर जोड़ - तोड़ , फिर जाति- धर्म का गुणा- भाग ,
फिर अपने स्वार्थ सिद्ध करने हित , वैमनष्य की वही आग /
फिर अय्यारी - मक्कारी के लटके- झटके , फिर सीप - साप ,
फिर वादों , नारों और घोषणाओं का बस मिथ्या प्रलाप /
फिर निर्दल , दल , दलबल , दलदल , फिर भांति- भांति के रचे स्वांग ,
फिर एक - दूसरे प्रतिद्वंदी की , खीच रहे हैं सभी टाँग /
फिर खुद को सच्चा जनसेवक , साबित करने की वही होड़ ,
फिर एक- दूसरे के खेमे में , नकबजनी , फिर तोड़ - फोड़ /
फिर राजनीति के सौदागर , पल- पल में बदल रहे पाले ,
फिर वह ही शतरंजी बिशात , फिर विषधर नाग वही काले /
फिर वही कहानी बार- बार , फिर जन- गण से विश्वासघात ,
फिर आम आदमी की , आशाओं पर होगा उल्का प्रपात /
आखिर कब तक , इस मक्कारी - अय्यारी को झेले जनता ?
आखिर कब तक , इन नटवरलालों के हाथों खेले जनता ?
अब जाति - धर्म की राजनीति , अब दल वाली निष्ठा छोड़ो ,
फिर राष्ट्रधर्म को अपनाओ , नव गति दो , राष्ट्र दिशा मोड़ो /
- एस.एन . शुक्ल
28 comments:
वाह सर वाह...
जबरदस्त कविता...
काश उन तक भी पहुँचती जिनके लिए लिखी गयी है...
सादर.
फिर से चुनाव होने वाले हैं जनता को फिर से गुमराह किया जा रहा है... इस कड़वे सच को बखूबी बयान करती प्रभावशाली रचना!
शब्द शब्द बेजोड़ ...वाह...बधाई बधाई बधाई...
नीरज
और ये है प्रजातंत्र में चोरों को वैधानिक तरीके से चोर बनाने की प्रक्रिया , अच्छी प्रस्तुति !
बहुत अच्छे शुक्ल जी! श्वान, काक, रंगे सियार.. बहुत सही पहचाना है इनके चरित्र को आपने..!
behad khoob...
नेताओं और राजनीति की सदा यही कहानी रही है और आगे भी यही रहेगी ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
हर बार यही नाटक होता है ..पात्र बदलते हैं पर जनता हर बार ठगी जाती है .. अच्छी प्रस्तुति
सब देखना पुनः लिखा है।
बेहद तरतीब और तरक़ीब से अपनी बात रखी है।
उत्तम सन्देश, आभार.
Vidya ji,
Anita ji,
Niraj Goswami ji,
आप मित्रों का स्नेहाशीष पाकर रचना और मैं कृतार्थ हुए.
P.C. Godiyal ji,
Lalit verma ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Asha ji,
Pallavi ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन का आभार, स्नेह प्रदान करने का धन्यवाद.
Shreddheya Sangita ji,
आपके स्नेह का आभारी हूँ.
Pravin pandey ji,
Manoj kumar ji,
Kewal joshi ji,
आभारी हूँ, इसी स्नेह की हमेशा अपेक्षा है.
बहुत अच्छे शुक्ल जी! वाह...बधाई
अच्छी प्रस्तुति
जबरदस्त कविता..
बधाई..
उत्तम सन्देश जबरदस्त कविता बधाई..
प्रभावशाली रचना....
बहुत अच्छा और जल्द से जल्द नयी रचना लाये ..आभार
wah Shukla ji..chunavi prapanch ke sach ko badi sahajta se prastut kar diya aapne...bahut sundar rachna..
Sanjay Chaurasiya,
Jaidev Barua,
Thanks for your visit and comments.
Poonam ji,
SONIT JI,
I am very pleased for your visit and support.
शुक्ला जी आपने जो लिखा है वह वास्तव में आज की सच्चाई है, आपकी चुटीली भाषा में यह अत्यंत सुन्दर रचना है अतुलनीय है . तहे दिल से आपको इस रचना के लिए बधाई देता हूँ.
आपका नेता-पुराण नेताओं के चरित्र का आईना है। बहुत ही सटीक !
बधाई !
एक-एक शब्द सही।
जिनके लिए लिखा गया है, वे पढ़ें तो शायद शर्म करें।
Purushottam pandey ji,
susheela ji,
Mahendra verma ji,
आपकी शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार.
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