आशाएं हम खोज रहे हैं,इस अँधियारे में /
कल के बड़े हादसे में, किस घर का कौन गया ?
एक अजब सन्नाटा है, हर घर -चौबारे में /
दहशत ले , वापस लौटे थे , कल स्कूलों से ,
अब वे बच्चे पूछ रहे हैं, कल के बारे में /
सब पर बीत रही एक जैसी , फिर भी एक नहीं ,
बटे हुए कौम-ओ -मजहब के, लोग दयारे में /
शहर सभ्यता के मानक थे , अब वह बात कहाँ ,
एक नयी दुनिया बसती , इस पत्थर - गारे में /
घुटकर चीखें अन्दर की अन्दर रह जाती हैं ,
तूती की आवाज कौन सुनता नक्कारे में ?
26 comments:
घुटकर चीखें अन्दर की अन्दर रह जाती हैं ,तूती की आवाज कौन सुनता नक्कारे में ?
सही कहा आपने, कल की घटना को शब्दों में अच्छा बांधा , बहुत सुंदर बधाई
यह सब देख हृदय रो पड़ता है।
कल के बड़े हादसे में, किस घर का कौन गया ?एक अजब सन्नाटा है, हर घर -चौबारे में /
... बहुत मार्मिक और सशक्त अभिव्यक्ति.
सच का आइना हैं आपकी लिखी पंक्तियाँ..... न जाने कब तक ये सब चलता रहेगा ...
वन्दनीय शुक्ल जी
बड़ी मर्म स्पर्शी रचना व्यथा लगी सच छूने
इस अंधियारे ने अनगिन घर सच कर डाले सूने
सच कोई जवाब नहीं ,अति सुन्दर रचना
वन्दनीय शुक्ल जी
बड़ी मर्म स्पर्शी रचना व्यथा लगी सच छूने
इस अंधियारे ने अनगिन घर सच कर डाले सूने
सच कोई जवाब नहीं ,अति सुन्दर रचना
hriday vidarak rachna ..
सच को दर्पण दिखाती हुई समसामयिक रचना सोचने को विवश करती है!
मनमोहन कर दंडवत, लौटा आज स्वदेश,
भू-खंड एकड़ चार सौ, भेंटा बांग्लादेश |
भेंटा बांग्लादेश, पाक को कितना हिस्सा,
काश्मीर का देत, बता दे पूरा किस्सा |
बड़ा गगोई धूर्त, किन्तु तू भारी अड़चन,
यहाँ करे यस-मैम, वहां क्यूँ यस-मनमोहन ??
कायर की चेतावनी, बढ़िया मिली मिसाल,
कड़ी सजा दूंगा उन्हें, करे जमीं जो लाल |
करे जमीं जो लाल, मिटायेंगे हम जड़ से,
संघी पर फिर दोष, लगा देते हैं तड़ से |
रटे - रटाये शेर, रखो इक काबिल शायर,
कम से कम हर बार, नया तो बक कुछ कायर ||
आदरणीय मदन शर्मा जी के कमेंट का हिस्सा साभार उद्धृत करना चाहूंगा -
अब बयानबाजी शुरू होगी-
प्रधानमंत्री ...... हम आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देंगे ...
दिग्गी ...... इस में आर एस एस का हाथ हो सकता है
चिदम्बरम ..... ऐसे छोटे मोटे धमाके होते रहते है..
राहुल बाबा ..... हर धमाके को रोका नही जा सकता...
आपको पता है कि दिल्ली पुलिस कहाँ थी?
अन्ना, बाबा रामदेव, केजरीवाल को नीचा दिखाने में ?????
हर शेर सत्य बयानी कर रहा है ... कडुवे हैं सभी पर सत्य ...
दहशत ले , वापस लौटे थे , कल स्कूलों से ,
अब वे बच्चे पूछ रहे हैं, कल के बारे में /
बहुत मार्मिक रचना...
भय आतंक हिंसा , ये रोज़-रोज का खून खराबा
और कब तक सहना होगा ये बतला दो बाबा....
अति सुन्दर रचना .............
तराशे हुए शब्दों और शेरों द्वारा दिल्ली बम धमाकों की व्यथा बयां करती वन्दनीय प्रस्तुति - साधुवाद
"सब पर बीत रही एक जैसी, फिर भी एक नहीं ,
बटे हुए कौम-ओ -मजहब के, लोग दयारे में"
nanga saty sab ke saamne hai lekin samajh nahi aata aaj vo bheed kahan gayi jo anna ke samay thi...kyu nahi is kanoon vyavastha ko jhakjor deti, kyu aaj bhi aatankwadi hamari jailon me surakhit pade hain?
.
तूती की आवाज कौन सुनता नक्कारे में ?....
कोई अपना हो तो सुने। सिर्फ तानाशाही है।
.
बहुत ही मार्मिक ग़ज़ल। मन में घर कर गई।
वर्तमान परिवेश से आहत कवि का ह्रदय
कितनी प्रखरता के साथ अभिव्यक्त हुआ
है. आक्रोश जन - जन के मन में भी
यही है. साधुवाद.
आनन्द विश्वास.
अहमदाबाद.
चलो , कुछ खुद को बदलें,कुछ निज़ाम की बदलें.
तभी रुकेंगे हादसे.
आशाएं हम खोज रहे हैं,इस अँधियारे में /
बहुत प्रभावी अशआर...
शानदार ग़ज़ल...
सादर....
वर्तमान हालातों को सही ढंग से अभिव्यक्त करती हैं यह पंक्तियाँ ....आपका आभार
suneel kumar ji,
pravin pandey ji,
kailash sharma ji'
Dr. Monika sharma ji
आप मित्रों की प्रशंसा का आभारी हूँ /
Virendra tiwari ji,
Anupama ji,
Roopchandra shastri ji,
Ravikar ji
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रया हमारा उत्साहवर्धन करती है /
Digambar naswa ji,
Dr. Sharad ji,
Maheshwari kaneri ji,
Rakesh kaushik ji
आपने सहारा , बहुत- बहुत आभार /
Vijaipal Kuradia ji,
Anamika ji,
ZEAL JI,
Manoj ji
आप मित्रों की प्रशंसा का आभारी हूँ /
Anand vishwas ji,
Vishal ji,
S. M. Habeeb ji,
Kewal Ram ji
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रया का आभारी हूँ /
Post a Comment