वे दादी-नानी की काल्पनिक कहानियां
मायावी दानव और उसका तिलिस्म
जो अपने विरोधियों को पत्थर बना देता था
किसी राजकुमारी को अपहृत कर बंदी बना लेता था
उससे जो भी टकराता .
वह या तो मारा जाता-
या पत्थर का हो जाता
उसने जाने कितनी गर्दनों को कतरा .
जाने कितनों को बनाया भेड़ा -बकरा
उसे वर्षों तक कोई हरा नहीं पाया
क्योंकि उसकी आत्मा -
उसके प्राणों का रहस्य कोई नहीं खोज पाया .
फिर किसी तरह भेद खुला ,
कि दानव की आत्मा -
पिंजरे में बंद तोते में कैद है .
जब वह तोता मरेगा-
तो दानव भी निर्जीव हो जायेगा
सात तालों में बंद तोता
अभेद्य सुरक्षा तंत्र से घिरा तोता
तिलिस्मी चक्रव्यूह में कैद तोता
और उस तोते में बसी दानव आत्मा
जहाँ न पहुंचना आसान था
और न तोते को मार पाना .
फिर एक राजकुमार का दृढ निश्चय
और उसका मार्ग प्रशस्त करने वाला फकीर
उसने राह दिखाई ,
राजकुमार को तिलिस्मी अंगूठी पहनाई .
अब वह अदृश्य हो सकता था.
सुरक्षा घेरे को भेद तोते तक पहुँच सकता था.
यह संभव हुआ -
राजकुमार ने तोते की गर्दन मरोड़ी
और दानव धराशाई हो गया .
आज देश में बहुत सारे दानव हैं
उनहोंने भी लोकतंत्र की राजकुमारी को कैद कर रखा है.
तोतों में नहीं-
विदेशी बैंकों के रहस्यमय खातों में.
देश को किसी राजकुमार, किसी फ़कीर का इंतज़ार है
क्या कोई राजकुमार आएगा ?
कोई फ़कीर उसे मार्ग दिखायेगा ?
वह भेदेगा रहस्य को ?
पहुँच सकेगा उन बैंक खातों तक?
और यह देश-
देश का लोकतंत्र दानवों के आधिपत्य से मुक्त हो पायेगा ?
और न तोते को मार पाना .
फिर एक राजकुमार का दृढ निश्चय
और उसका मार्ग प्रशस्त करने वाला फकीर
उसने राह दिखाई ,
राजकुमार को तिलिस्मी अंगूठी पहनाई .
अब वह अदृश्य हो सकता था.
सुरक्षा घेरे को भेद तोते तक पहुँच सकता था.
यह संभव हुआ -
राजकुमार ने तोते की गर्दन मरोड़ी
और दानव धराशाई हो गया .
आज देश में बहुत सारे दानव हैं
उनहोंने भी लोकतंत्र की राजकुमारी को कैद कर रखा है.
तोतों में नहीं-
विदेशी बैंकों के रहस्यमय खातों में.
देश को किसी राजकुमार, किसी फ़कीर का इंतज़ार है
क्या कोई राजकुमार आएगा ?
कोई फ़कीर उसे मार्ग दिखायेगा ?
वह भेदेगा रहस्य को ?
पहुँच सकेगा उन बैंक खातों तक?
और यह देश-
देश का लोकतंत्र दानवों के आधिपत्य से मुक्त हो पायेगा ?
26 comments:
इस रचना के माध्यम से आपने बिल्कुल सही संदेश भेजा है.. अतिसुन्दर..आभार..
देश बचे और बढ़े।
सुरेश कुमार जी,
प्रवीण पाण्डेय जी ,
आप दोनों शुभाकांक्षियों का रचना की प्रशंसा के लिए आभार, धन्यवाद
दादी - नानी की कहानियों से जोड़ कर आज का सच बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ..
dil ki aawaj hai door tak jayei,,kisi na kisi rajkumar ko khabar bhi ho jayegi,,,behtarin tarike se diya gaya behtarin sandesh..apne blog pe bhi amantran ke sath
यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक रचना...
संगीता जी,
डॉ आशुतोष जी ,
डॉ शरद जी
सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी शुभचिंतकों का बहुत- बहुत आभार, धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना और गूढ़ सन्देश सार्थक ये बचपन की कहानी आज उस पिजड़े की चाबी भी हमारे हाथ में है गर्दन भी पर हम ही बेहोश हो गए हैं तो गर्दन दबे कैसे किसे आने की जरुरत है शुक्ल जी जो जहाँ हैं शुरू हो जाये बस क्रांति बिना कुछ नहीं
भ्रमर ५
शुक्ल जी!
कोइ बाहर से नहीं आएगा, हमें अपने अंदर से ही खोजना होगा!! आपकी कविता ने उन पुरानी कहानियों को भी सामयिक और प्रासंगिक बना दिया है!!
संदेशप्रद रचना।
कौन राजकुमार ? कहाँ का राजकुमार?किसके घर में आएगा हमारे?हम तो अपने घर में आने नहीं देंगें, पडोसी के घर आ जाए तो ठीक होगा |
सुरेन्द्र शुक्ल जी,
वर्मा जी ,
मनोज जी
आप मित्रों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं का आभार , धन्यवाद
ऐसे राजकुमार और फकीर का सब को इंतजार है।
बहुत बढ़िया कविता।
बहुत सुन्दर, शानदार और सार्थक रचना! उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
बहुत सुन्दर और शानदार रचना! लाजवाब प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
achchi kavita....danyawaad...:)
सार्थक और संदेश देती सुन्दर रचना.....
तिलस्मी कथा को वर्तमान सन्दर्भ में कुशलता से प्रस्तुत किया है.
बहुत अच्छी रचना है!
शुभकामनाएँ!
एक लोक कथा के माध्यम से आज की व्यवस्था का बहुत सजीव और सटीक चित्रण. बहुत सुन्दर और समसामायिक प्रस्तुति...
आदरणीय शुक्ला जी सादर प्रणाम |बहुत ही सुंदर कविता बधाई |मित्रता दिवस पर मैं आपको उत्तर नहीं दे सका गांव गया था |
आदरणीय शुक्ला जी सादर प्रणाम |बहुत ही सुंदर कविता बधाई |मित्रता दिवस पर मैं आपको उत्तर नहीं दे सका गांव गया था |
are aaj to aapne bachapan yaad dila diya......aisee hee kahaniya padkar bade hue hai.......
bhavishy ko le aapkee chinta bhee jayaz hai.......ab ek rajkumar se samadhan nahee hone wala.......hum sabheeko apna apna sarthak yogdaan dena hoga......
netao kee matr ninda karne se kuch hath nahee aaega....
majbbot kadam aage badane honge bhavishy ko savarne ke liye.....
Mahendra Varmaa ji ,
Babali ji ,
S. VIKRAM JI ,एवं
Maheshwari Kaneri ji
आप सभी अनन्य शुभचिंतकों का मेरी रचना को समर्थन का ह्रदय से आभारी हूँ /
Sapana Nigam ji,
Amarendra Amar ji,
Kailash C Sharma ji,
Jay Krishan Ray Tushar ji,and
Sarita Agrawal ji
many- many thanks for your appriciation and comments in fevour of my poem.
कहानी के माध्यम से सही सन्देश दिया है आपने .. पर वो राजकुमार कब आएगा पता नहीं ...
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