इस देश में अब प्रेरणा, पौरुष , पराक्रम अस्त है,
साहित्य, संस्कृति , सृजन, शुचि ,संवेदना संत्रस्त है .
अन्याय के प्रतिकार की तो बात ही मत कीजिये ,
अधिकार अपने मागने का , हौसला तक पस्त है .
उत्कर्ष के, उत्थान के, निर्माण, नव निर्माण के ,
बनते हैं कितने , रोज फर्जी कागजों पर आंकड़े ,
यह आंकड़ों का खेल भी, बाजीगरी का खेल है ,
बस मस्मरेजम खेल में , सरकार अपनी व्यस्त है.
हाथ खाली हैं जवानों के, वे रह- रह मल रहे हैं ,
बुद्धिजीवी ! बंद कमरों में जुगाली कर रहे हैं ,
याकि टी वी चैनलों पर बस ज़बानों की नुमाइश ,
मानो प्रवचन बांचता , यह वर्ग भी सन्यस्त है .
हर महकमा, हर मुलाजिम , लूट के पर्याय जैसा ,
देश का क़ानून , खुद में पंगु सा, असहाय जैसा ,
पेट उतने ही बड़े , जितनी बड़ी वे कुर्सियों पर ,
देश ! ईश्वर के भरोसे है , व्यवस्था ध्वस्त है .
कुछ अस्त है, कुछ पस्त है , कुछ त्रस्त, कुछ संत्रस्त है ,
लगता है , जैसे देश भारत वर्ष ही अभिशप्त है .
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19 comments:
इस कीचड़ में फूल उगेगा।
हालात तो यही हैं...... पर ऐसा आखिर कब तक...?
हाथ खाली हैं जवानों के, वे रह- रह मल रहे हैं ,
बुद्धिजीवी ! बंद कमरों में जुगाली कर रहे हैं ,
याकि टी वी चैनलों पर बस ज़बानों की नुमाइश ,
मानो प्रवचन बांचता , यह वर्ग भी सन्यस्त है .
सटीक लिखा है .. शायद हो कभी यह अभिशाप खत्म
प्रवीण पाण्डेय जी ,
डॉक्टर मोनिका शर्मा जी ,
संगीता जी
आप शुभचिंतकों का ह्रदय से आभार , आप का स्नेह मेरा संबल है और समर्थन हमारे शब्दों की प्रामाणिकता ,आभार भी धन्यवाद भी
देश का क़ानून , खुद में पंगु सा, असहाय जैसा ,
पेट उतने ही बड़े , जितनी बड़ी वे कुर्सियों पर ,
देश ! ईश्वर के भरोसे है , व्यवस्था ध्वस्त है .+
आपने तो इस कविता में पूरी व्यवस्था की तस्वीर ही खींच दी है।
ye keya ho rakha hai
kab keya ho jae
देश की सच्ची तस्वीर दिखाती .........क्षोभ से भरी रचना
Manoj kumar ji,
vidhaya ji,
Surendr singh jhanjhat ji,
आप शुभचिंतकों और मित्रों का बहुत-बहुत आभार, रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद .
jis baat ko main apni kavita me jis andaz me main na kah paayi aapne kah di. bahut hi prabhaavotpadak srijan.
aabhar.
अनामिका जी
आपने इन शब्दों से मेरी रचना को जो सम्मान दिया है, उसका बहुत- बहुत आभार , आपसे निरंतर स्नेह की अपेक्षा रहेगी .
बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें !
सतीश सक्सेना जी
मेरे ब्लॉग पर शायद आपका पहली बार आगमन हुआ है , स्वागत है आपका और सकारात्मक प्रतिक्रया के लिए आभार भी
bahut sundar aur sateek abhivyakti !
Thanks for your comment in favour of my poem.
कुछ अस्त है, कुछ पस्त है , कुछ त्रस्त, कुछ संत्रस्त है ,लगता है , जैसे देश भारत वर्ष ही अभिशप्त है .
.haalat to yahi hain
wonderful poem and message
Rashmi Prabha ji,
Sanjay Bhasker ji
aap mitron kee sakaratmak pratikriyaon ke prati aabhaar, dhanyawad .
aaj kee sthiti se ru ba ru karvatee rachana....badee sashkt hai........dehkhiye kab inka pet bharta hai ya neend khultee hai ....
Aabhar
Sarita ji
aapakee sakaratmak pratikriya ke liye aabhaar, dhanyawaad
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