कल के उजाड़, आज हैं बहार की तरह
और हम उजाड़ से अधिक उजाड़ की तरह.
वो सिर उठाये, आलीशान ताजमहल हैं.
हम हैं उखड चुकी, किसी मजार की तरह.
वो शीश महल में सजे, फैशन की ज्यों दुकान,
हम हैं किसी उजड़ी हुई बाज़ार की तरह.
वो पालकी में बैठे किसी राजकुंवर से,
हम पालकी लिए हुए कहार की तरह.
मसनद पे जमे हैं, वो किसी साहूकार से,
राशन दुकान वाली, हम कतार की तरह.
उनके-हमारे बीच में अंतर बहुत बड़ा ,
चाबी खजाने की वो, हम उधार की तरह.
19 comments:
बहुत सशक्त रचना सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .
बहुत सशक्त रचना सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .
बेहतरीन पंक्तियाँ, वाह।
वो पालकी में बैठे किसी राजकुंवर से,
हम पालकी लिए हुए कहार की तरह.
वाह.... बहुत सुन्दर रचना....
सादर बधाई...
बहुत बढ़िया गज़ल ...
वो शीश महल में सजे, फैशन की ज्यों दुकान,हम हैं किसी उजड़ी हुई बाज़ार की तरह.
बहुत खूब ..
बहुत अच्छी ग़ज़ल,
वे और हम की बेहतरीन तुलना।
वो पालकी में बैठे किसी राजकुंवर से,
हम पालकी लिए हुए कहार की तरह ...
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है .. आज के नेताओं पर सही उतरता है .. चुनने के बाड़ ऐसा बर्ताव ही करते हैं वो ...
वो पालकी में बैठे किसी राजकुंवर से,
हम पालकी लिए हुए कहार की तरह.
ग़ज़ल का हर शेर खूबसूरत है मगर इस शेर के लिए आपकी लेखनी को नमन...
बहुत सुन्दर..! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!शुभकामनाएं.
priy Virendra ji
Pravin Pandey ji
S.M. Habeeb ji
ब्लॉग पर आगमन और स्नेह- समर्थन प्रदान करने का आभारी हूँ,
Sangita ji,
Devesh Pratap ji,
Mahendra Verma ji
स्नेह- समर्थन प्रदान करने का आभारी हूँ, धन्यवाद
Digamber Naswa ji,
Dr. Sharad ji,
Ankit ji
ब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने का आभारी हूँ, धन्यवाद
वो पालकी में बैठे किसी राजकुंवर से,
हम पालकी लिए हुए कहार की तरह.....
Very touching lines...
.
वाह.... बहुत सुन्दर रचना....
सादर बधाई...
हम पालकी लिए हुए कहार की तरह...वाह...बेमिसाल रचना...
नीरज
'चाबी खजाने की वो , हम उधार की तरह '
यथार्थपरक , उम्दा ग़ज़ल ....हर शेर अर्थपूर्ण
ZEAL JI,
Sunil Kumar ji,
Neeraj Goswami ji,
Surendra Singh ji
उत्साहवर्धन , सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ , धन्यवाद
सार्थक अभिव्यक्ति!!
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