और कैशोर्य?
माता-पिता से लेकर सारे बड़ों की
घूरती-टोकती सी निगाहें
हर कदम पर टोका-टोकी .
फिर आई तरुणाई.
ऐसे मानो अभिशाप बनकर आई.
अपनी इच्छा से कहीं आने-जाने की,
अपने मन का कुछ भी करने की,
छूट नहीं, पूरी पाबन्दी !
उफ्फ!
हर तरफ बदन को टटोलती- घूरती निगाहें ,
जिनमें अपनेपन से अधिक वासना की चाह ,
सच-
किसी युवती के लिए कितनी कंकरीली-पथरीली राह?
फिर विवाह-
जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय.
लेकिन इस मामले में भी लड़की जैसे गाय.
चाहे जिस खूटे से बाँध देना
कोई नहीं जानना चाहता उसकी इच्छा
किसी अनजान के हाथों अपना सारा जीवन
अपना स्वत्व , अस्तित्व और भविष्य
सौंपने को विवश,
फिर वहां पितृगृह से भी अधिक पाबंदियां .
जीवन साथी का प्यार-मनुहार कितने दिन ?
फिर संतानों का प्रजनन
उनका पालन-पोषण
ममत्व भी, दायित्व भी.
जननी और पाल्या,
गृह लक्ष्मी,
गृह स्वामिनी ,
पति की अर्धांगिनी
कितने सारे विशेषणों के आभूषण .
किन्तु क्या, कभी किसी ने पढ़ा नारी का मन?
जहां जन्मी-
उससे पृथक हो जाना उसकी नियति है .
जिसे जीवन सौंपा -
वह स्वामी पहले है, बाद में पति है.
जिन्हें जन्म देने, पालने-पोषने में.
अपना यौवन सुख बलिदान कर दिया
वे भी कब हो पाते हैं उसके ?
नारी जीवन की यह कैसी गति है.
उसकी एक भी भूल कभी क्षमा नहीं की गयी
आदि काल से नारी जीवन की यही कहानी है.
किन्तु उसकी पीड़ा किसने जानी है?
19 comments:
nice poem.....:)
http://aarambhan.blogspot.com/2011/08/blog-post_19.html
सत्य को दिग्दर्शित कराती बहुत मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति..
नारी जीवन की vyatha को सटीक शब्दों व् शैली me प्रस्तुत kiya है आपने .आभार
BLOG PAHELI NO.1
प्रभावित करती रचना ...सुंदर
अच्छी कविता!
समाज अब बदल रहा है. समय के साथ-साथ स्त्री की स्थिति भी बदल रही है!
कविता में वर्णित दृष्टांत मन को छूते हैं.. लेकिन आज की नारी का व्यक्तित्व बहुत तेज़ी से बदला है.. और जिनका नहीं बदला है वो परम्परा से बंधी हैं.. उनके लिए तो पुत्री, व्याहता, मान आदि सारे रूप एक रूढ़ी से बंधे हैं!!
bahut bhavpporn abhivyakti nari man kee vyatha ko bahut sahi abhivyakt kiya hai aapne.
naari par likhi ek sarthak poem
maine haal hi me ek kavita likhi hai krupya ek najar dalein
जंग में ना जा सको तो जाने वालों को आधार दो
नारे ना लगा सको समर में तो कम से कम शब्दों को तलवार दो
और कुछ ना कर सको तो , क्रांति को विस्तार दो
इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.
http://meriparwaz.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html
स्वामिनी और स्वातन्त्रय।
सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...
ardhangini,swamini aur adhikarini aaj bhi nadi ke do kinare lagte hai (kuchh % ko chhod kar) jo kabhi nahi milte lekin sada se hi milne ko sangharshrat aur jaise do kinare door se dekhne par milte hue se lagte hain isi prakar ye swamitv aur adhikar upar se us nari ko mile hue se lagte hain lekin saty kuchh aur hi hota hai.
sunder, sateek abhivhakti.
aap ka yahan bhi swagat hai...
http://anamka.blogspot.com/2011/08/blog-post_20.html
नारी की व्यथा को कौन समझ पाया है ?
कविता हृदयस्पर्शी है।
Bahut achchi kavita! Aabhaar!
सच कहा है ... नारी जीवन अपने समाज में कष्ट प्रद है ... मार्मिक ...
(रमजान ,रमझान )मुबारक ,क्रष्ण जन्म मुबारक .
संवेगों को उभारता अमूर्त नारी का चित्र जो साकार रूप हम सब की धात्री है ,बहना है पत्नी है लेकिन कितनी और कैसी पत्नी है वह हमारी सब जानतें हैं ?मानतें हैं ?सअस को जिसके साथ यह सशक्त कविता शुक्ला जी की आभार इस मंगल पर्व पर इसको हमने बांचा ,महसूसा उस एहसास को आंजा जिसके साथ यह सहभावित रचना लिखी गई है .
जय अन्ना ,जय भारत . . रविवार, २१ अगस्त २०११
गाली गुफ्तार में सिद्धस्त तोते .......
http://veerubhai1947.blogspot.com/2011/08/blog-post_7845.html
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
http://sb.samwaad.com/
रविवार, २१ अगस्त २०११
सरकारी "हाथ "डिसपोज़ेबिल दस्ताना ".
http://veerubhai1947.blogspot.com/
S. Vikram ji
Kailash C. Sharma ji
Shikha ji
Dr. Monika ji
आपके ब्लॉग पर आगमन तथा समर्थन का
बहुत- बहुत आभार.
Sahil ji
Lalit Varma ji
Shalini ji
Kanu ji
आपके समर्थन का बहुत- बहुत आभार.
Pravin Pandey ji
Dr. Sharad ji
AnamikaJI
mAHENDRA vARMA JI
आपके ब्लॉग पर आगमन तथा
आपके समर्थन का बहुत- बहुत आभार.
nootan ji
VEERUBHAI JI
आपके स्नेह का बहुत- बहुत आभार.
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