अज़नबी से शहर
इस चकाचौंध में , मतलबी हर नज़र /गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /
धर्म-ओ -मजहब वहां , जातियां हैं मगर ,
रिश्ते - नातों की भी , थातियाँ हैं मगर ,
पर शहर में किसे , कौन , कब पूछता ,
मरने - जीने से भी , लोग हैं बेखबर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /
दौड़ती - भागती जिन्दगी है यहाँ ,
रात-ओ-दिन जागती जिन्दगी है यहाँ ,
काम है , दाम है , काम ही काम है ,
काम में मुब्तिला शख्स आठों पहर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /
ये शहर क्या है , बस एक बाज़ार है ,
रिश्ते- नातों में भी दिखता व्यापार है ,
कौन, कब, कैसे , किसकी गिरह काट ले ,
हर कोई खोजता है यहाँ माल-ओ- जर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /
कितने सम्पन्न , साधन भरे हों नगर ,
आश्रिता आज भी उनकी है गावों पर ,
गाँव संसाधनों से परे ही सही ,
किन्तु फिर भी हैं वे अन्नदाता के घर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /
- एस . एन . शुक्ल
21 comments:
मन को उद्वेलित करने वाली रचना....
कितने सम्पन्न , साधन भरे हों नगर ,
आश्रिता आज भी उनकी है गावों पर ,
गाँव संसाधनों से परे ही सही ,
किन्तु फिर भी हैं वे अन्नदाता के घर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर
शहरों और गावों की सच्ची कहानी...
बहुत प्रभावशाली रचना !
sahi kaha aapne shahar vakai ajnabi hain.sundar prastuti.aisa hadsa kabhi n ho
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
पक्की सड़कों के हैं यह शहर ...दिलों में नमी कहाँ से फिर आये
गाँव की पगडंडियों के सीनों पर ....गुज़रे पल आज भी नज़र आयें
किन्तु फिर भी हैं वे अन्नदाता के घर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
जीवन कि सच्चाई कही है आपने
बहूत हि बेहतरीन रचना...
बहूत बढीया :-)
बहुत सही !!
सही में अपनापन तो शहर में कहीं गुम ही हो गया है
सुंदर रचना ....
Very nice post.....
Aabhar!
sach ka samna...
bahut sundar prastutu.
Aabhar Apka.
sach ka samna...
bahut sundar prastutu.
Aabhar Apka.
बिलकुल सही फ़रमाया साहब... गाँव अपने से, अज़नबी से शहर
shukla ji,
aapki bhavnaye aur saral bhasha me nikharker samne schchayee prakat krti hai
madhu tripathi MM
http/:kavyachitra.blogspot.com
इस चकाचौंध में राह नयी, पर दिल बेगाना लगता है।
Dr.Sharad ji,
Anita ji,
Shalini ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ.
Kailash Sharma ji,
Dheerendra ji,
Reena Maurya ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Shiv Nath kumar ji,
Sanju ji,
आगे भी मिलता रहे यही स्नेह, यही अपेक्षा है.
Manish Singh ji,
Lokendra singh ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Madhu Tripathi ji,
Pravin pandey ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ.
sir, aapki kavitayen padh kar bahut achcha laga..seher me reh kar ham sab bhool gaye hai ki rishtey kya hota unki mithas kya hoti hai..
शुक्ल जी, आपने कई सारी रचनाएँ पढ़ी आज आपके ब्लॉग पर. सब एक पर एक. अभूत अच्छा लिखते हैं आप. गाँव और शहर के विभेद को दिखाती ये रचना बहुत अछि है.
मेरा आभार स्वीकार करें,
निहार
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