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Friday, July 13, 2012

(157) अज़नबी से शहर


               अज़नबी से शहर

इस चकाचौंध में , मतलबी हर नज़र  /
गाँव अपने से  हैं  , अज़नबी से शहर  /

धर्म-ओ -मजहब वहां , जातियां हैं मगर ,
रिश्ते - नातों की भी , थातियाँ  हैं  मगर ,
पर शहर में किसे , कौन , कब  पूछता  ,
मरने - जीने से  भी , लोग  हैं  बेखबर   /
गाँव अपने से  हैं  , अज़नबी से शहर  /

दौड़ती  -  भागती   जिन्दगी  है  यहाँ ,
रात-ओ-दिन जागती जिन्दगी है यहाँ ,
काम है ,  दाम है ,  काम ही काम है  ,
काम में मुब्तिला शख्स आठों पहर  /
गाँव अपने से  हैं  , अज़नबी से शहर  /

ये शहर क्या है , बस  एक  बाज़ार है ,
रिश्ते- नातों में भी दिखता व्यापार है ,
कौन, कब, कैसे , किसकी गिरह काट ले ,
हर कोई खोजता है यहाँ  माल-ओ- जर  /
गाँव अपने से  हैं  , अज़नबी से शहर  /

कितने सम्पन्न , साधन भरे हों नगर ,
आश्रिता आज भी उनकी है गावों पर ,
गाँव   संसाधनों  से  परे  ही  सही ,
किन्तु फिर भी हैं वे अन्नदाता के घर /
गाँव अपने से  हैं  , अज़नबी से शहर  /

                            - एस . एन . शुक्ल 

21 comments:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मन को उद्वेलित करने वाली रचना....

Anita said...

कितने सम्पन्न , साधन भरे हों नगर ,
आश्रिता आज भी उनकी है गावों पर ,
गाँव संसाधनों से परे ही सही ,
किन्तु फिर भी हैं वे अन्नदाता के घर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर

शहरों और गावों की सच्ची कहानी...
बहुत प्रभावशाली रचना !

Shalini kaushik said...

sahi kaha aapne shahar vakai ajnabi hain.sundar prastuti.aisa hadsa kabhi n ho

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

Saras said...

पक्की सड़कों के हैं यह शहर ...दिलों में नमी कहाँ से फिर आये
गाँव की पगडंडियों के सीनों पर ....गुज़रे पल आज भी नज़र आयें

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

किन्तु फिर भी हैं वे अन्नदाता के घर /
गाँव अपने से हैं , अज़नबी से शहर /

बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,

RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

मेरा मन पंछी सा said...

जीवन कि सच्चाई कही है आपने
बहूत हि बेहतरीन रचना...
बहूत बढीया :-)

शिवनाथ कुमार said...

बहुत सही !!
सही में अपनापन तो शहर में कहीं गुम ही हो गया है
सुंदर रचना ....

Sanju said...

Very nice post.....
Aabhar!

Jeevan Pushp said...

sach ka samna...
bahut sundar prastutu.
Aabhar Apka.

Jeevan Pushp said...

sach ka samna...
bahut sundar prastutu.
Aabhar Apka.

लोकेन्द्र सिंह said...

बिलकुल सही फ़रमाया साहब... गाँव अपने से, अज़नबी से शहर

Madhu Tripathi said...

shukla ji,
aapki bhavnaye aur saral bhasha me nikharker samne schchayee prakat krti hai
madhu tripathi MM
http/:kavyachitra.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय said...

इस चकाचौंध में राह नयी, पर दिल बेगाना लगता है।

S.N SHUKLA said...

Dr.Sharad ji,
Anita ji,
Shalini ji,

आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Kailash Sharma ji,
Dheerendra ji,
Reena Maurya ji,

आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Shiv Nath kumar ji,
Sanju ji,

आगे भी मिलता रहे यही स्नेह, यही अपेक्षा है.

S.N SHUKLA said...

Manish Singh ji,
Lokendra singh ji,

आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Madhu Tripathi ji,
Pravin pandey ji,

आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ.

Akhil said...

sir, aapki kavitayen padh kar bahut achcha laga..seher me reh kar ham sab bhool gaye hai ki rishtey kya hota unki mithas kya hoti hai..

ओंकारनाथ मिश्र said...

शुक्ल जी, आपने कई सारी रचनाएँ पढ़ी आज आपके ब्लॉग पर. सब एक पर एक. अभूत अच्छा लिखते हैं आप. गाँव और शहर के विभेद को दिखाती ये रचना बहुत अछि है.
मेरा आभार स्वीकार करें,

निहार