हंसकर हर एक गम को भुलाता रहा हूँ मैं /
ऐ ज़िंदगी ! तुझे यूँ निभाता रहा हूँ मैं /
औरों को न हो मेरे किसी दर्द का एहसास ,
यह सोच , अपने ज़ख्म छुपाता रहा हूँ मैं /
खुशियाँ भी बाटने में हिचकते हैं जबकि लोग,
तब दर्द दूसरों का , बटाता रहा हूँ मैं /
लोगों को गिले हैं , कि मैंने कुछ नहीं किया ,
कन्धों पे हिमाला को , उठाता रहा हूँ मैं /
खुशियों के पल भले ही कम हों , उनको याद कर ,
अपना हर एक दर्द , भुलाता रहा हूँ मैं /
खंजर मेरे सीने में , धँसे हैं अज़ीज़ के ,
जब दुश्मनों से खुद को, बचाता रहा हूँ मैं /
अनजाने दे सका न कोई एक भी खरोच ,
साँपों को खुद ही दूध पिलाता रहा हूँ मैं /
- एस. एन. शुक्ल
ऐ ज़िंदगी ! तुझे यूँ निभाता रहा हूँ मैं /
औरों को न हो मेरे किसी दर्द का एहसास ,
यह सोच , अपने ज़ख्म छुपाता रहा हूँ मैं /
खुशियाँ भी बाटने में हिचकते हैं जबकि लोग,
तब दर्द दूसरों का , बटाता रहा हूँ मैं /
लोगों को गिले हैं , कि मैंने कुछ नहीं किया ,
कन्धों पे हिमाला को , उठाता रहा हूँ मैं /
खुशियों के पल भले ही कम हों , उनको याद कर ,
अपना हर एक दर्द , भुलाता रहा हूँ मैं /
खंजर मेरे सीने में , धँसे हैं अज़ीज़ के ,
जब दुश्मनों से खुद को, बचाता रहा हूँ मैं /
अनजाने दे सका न कोई एक भी खरोच ,
साँपों को खुद ही दूध पिलाता रहा हूँ मैं /
- एस. एन. शुक्ल
31 comments:
बहुत खूब शुक्ल जी |
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई ||
achhi rachna hai
bahut sundar bhavabhivyakti.badhai.हे!माँ मेरे जिले के नेता को सी .एम् .बना दो.
वाह!!
बेहतरीन गज़ल.....
बेहतरीन ख़याल....
सादर.
खूबसूरत गजल
नवसंवत्सर की शुभकामनायें ।।
दिल के भावों को बडी खूबसूरती से पिरोया है।बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत खूब......खूबसूरत प्रस्तुति, शुभकामनायें..
भावों की सशक्त अभिव्यक्ति, दमदार..
बेहतरीन गज़ल, हर शेर पर दाद कबूल करें........
अति सुन्दर रचना.
RAVIKAR JI,
Madhuresh ji,
Shalini ji,
aabhaar aapakee pratikriyaa ke लिए.
Exepression ji,
आभारी हूँ आपके इस स्नेह का.
Sangita ji,
Nisha Maharana ji,
Karuna Saxena ji,
आपका स्नेह और समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना.
Pravin pandey ji,
Arun Nigam ji,
शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
HAR EK PANKTI ASAR KAR RAHI THI ...ANUBHAV SE HI SAHBDON ME SAJEEVATA AATI HAI ..SHAYAD!!!
सार्थक एवम बेहतरीन रचना । बधाई स्वीकार करें।
बहुत ही खूब साहब....आखिरी शेर तो बहुत ही उम्दा ।
वाह ...बहुत खूब ।
bahut khoob shukl ji!
बहुत ही लाजवाब ... हर शेर कमाल का है शुक्ल जी ... क्या बात है ...
सार्थक जीवन और सार्थक कविता।
अपनों के दिए ज़ख्म सबसे गहरे होते हैं...जो रिश्ते रहते हैं हरदम ...नासर बनकर ...छूती हुई ग़ज़ल ...!
सार्थक एवम बेहतरीन रचना । बढ़िया प्रस्तुति पर
बधाई ||
Bhavana ji,
Sangita ji,
ब्लॉग पर आगमन का स्वागत और समर्थन का आभार.
Imaran ji,
Sada ji,
Shalini ji,
आप मित्रों से इसी स्नेह की अपेक्षा रही है.
Digambar Naswa ji,
Lokendra Singh ji,
आपकी शुभकामनाओं का कृतज्ञ हूँ.
Saras ji,
समर्थन का ह्रदय से आभारी हूँ.
वाह वाह ! बहुत खूब शुक्ल जी !
आपका ब्लाॅग देखने के बाद, पढ़ने के बाद बड़ा ही आनंदित हो उठा मन।
इसके लिये आप बधाई के पात्र हैं,
आपसे अनुरोध है कि लगातार हम जैसे तमाम पाठकों के लिये ऐसे ही लिखते रहें।
धन्यवाद !!
वाह! अभी इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता .
Aniruddha Misra ji,
AINA JI,
आभारी हूँ आपकी इन शुभकामनाओं का .
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