नदी की धार में बहते हुए , प्यासा रहा हूँ मैं ,
कभी पूरी न हो पाई , वो अभिलाषा रहा हूँ मैं ,
मैं सारी जिन्दगी ऐसे जिया, जैसे खुली पुस्तक ,
समझ पाया जिसे कोई न , वह भाषा रहा हूँ मैं /
मैं कतरा हूँ, समंदर की निगहबानी में रहता हूँ ,
मैं लहरों में, तरंगों में , उछलता और बहता हूँ ,
मैं इस दुनिया से बाहर, दूसरी दुनिया से डरता था ,
उसी का फल, मैं सारी ज्यादती चुपचाप सहता हूँ /
ये माना , आज कतरे से , समंदर हो चुका हूँ मैं ,
मगर होकर समंदर भी, स्वयं को खो चुका हूँ मैं ,
समंदर रोज बढ़ता जा रहा है इसलिए, क्योंकर ,
बहाता आँसुओं की धार , इतना रो चुका हूँ मैं /
जो खुद के वास्ते जीते हैं , जो खुदगर्ज़ होते हैं ,
वे अपने हाथ अपनी जिन्दगी में , खार बोते हैं ,
मैं अपनी आपबीती से , महज इतना समझ पाया ,
वे अक्सर ठोकरें खाते हैं, अक्सर अश्क पीते हैं /
- एस. एन. शुक्ल
कभी पूरी न हो पाई , वो अभिलाषा रहा हूँ मैं ,
मैं सारी जिन्दगी ऐसे जिया, जैसे खुली पुस्तक ,
समझ पाया जिसे कोई न , वह भाषा रहा हूँ मैं /
मैं कतरा हूँ, समंदर की निगहबानी में रहता हूँ ,
मैं लहरों में, तरंगों में , उछलता और बहता हूँ ,
मैं इस दुनिया से बाहर, दूसरी दुनिया से डरता था ,
उसी का फल, मैं सारी ज्यादती चुपचाप सहता हूँ /
ये माना , आज कतरे से , समंदर हो चुका हूँ मैं ,
मगर होकर समंदर भी, स्वयं को खो चुका हूँ मैं ,
समंदर रोज बढ़ता जा रहा है इसलिए, क्योंकर ,
बहाता आँसुओं की धार , इतना रो चुका हूँ मैं /
जो खुद के वास्ते जीते हैं , जो खुदगर्ज़ होते हैं ,
वे अपने हाथ अपनी जिन्दगी में , खार बोते हैं ,
मैं अपनी आपबीती से , महज इतना समझ पाया ,
वे अक्सर ठोकरें खाते हैं, अक्सर अश्क पीते हैं /
- एस. एन. शुक्ल
26 comments:
जिसे समझ नहीं पाया..वो भाषा हूँ मैं..
बहुत अच्छे भाव...
सादर.
बहुत खूब..... शुक्ला जी, अब होली - उल्लास का रसपान भी करें - प्यास अवश्य बुझेगी,.... आपको सपरिवार होली की शुभ कामनाएं.
पहली बार आई हूँ.कविता पढ़ी.
मैं इस दुनिया से बाहर, दूसरी दुनिया से डरता था
उसी का फल, मैं सारी ज्यादती चुपचाप सहता हूँ '
एक अच्छा,सम्वेदंशीक और इश्वर से डरने वाला व्यक्ति ऐसा ही होता है.निश्चिन्त रहिये कुछ ले जाये न ले जाये दिल में सुकून लेके जायेंगे और इश्वर से नजर मिला सकेंगे.आपकी कविता में आपको देख...पढ़ रही हूँ मैं.जब भी नया लिखे मुझे लिंक जरूर दिया कीजियेगा प्लीज़.मैं भूल जाती हूँ.
कतरे से समुन्दर हो जाना और खुद को खो देना यही तो जिंदगी का राज है...बहुत प्रभावशाली रचना !
सुभानाल्लाह......बहुत ही उम्दा।
नदी की धार में बहते हुएे प्यासे नहीं रहते,
जो मन ने ठान ली होती, िनराशे नहीं रहते,
अगर दो शब्द भी सबसे छुपाकर जेब में रखते,
तो शायद आप भी अनजान भाषा से नहीं रहते.... बहुत सुन्दर किवता है आपकी...बधाई........
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आशावादी रचना
बाहर से न दिखने वाला एक पूरा संसार रहता है मन में...वह जैसा भी है..बचा रहे..
बेहतरीन अशावादी भाव...
सुन्दर रचना..
सादर.
बहुत सुन्दर....
नदी की धार में बहते हुएे प्यासे नहीं रहते,
जो मन ने ठान ली होती, िनराशे नहीं रहते,....बहुत सुँदर प्रस्तुति| .आपको स: परिवार होली की हार्दिक शुभकामनाये.......
समंदर और कतरे के रूपक बेहद सुंदर बन पड़े हैं। बहुत सुंदर भाव लिए अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति!
वाह .. धाराप्रवाह ... सजीव कविता ...
बहुत सुंदर
expression
thanks for your wishes & following.
Kewal joshi ji,
Anita ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ इस स्नेह का.
Indu puri ji,
Karuna Saxena ji,
आपके ब्लॉग पर पधारने और समर्थन का आभारी हूँ.
Imaran Ansari ji,
Sunil Kumar ji,
Pravin pandey ji,
Vidya ji,
आपकी स्नेहिल शुभकामनाएं मिलीं, आभारी हूँ
आप मित्रों से इसी स्नेह और आशीर्वाद की अपेक्षा थी.
Lokendra Singh ji,
P.S.Bhakuni ji,
आप मित्रों का समर्थन paker saakaar हुयी कविता, आभार.
Sushila ji,
Digambar Naswa ji,
S.M. JI,
आप शुभचिंतकों का स्नेह मिला, बहुत- बहुत आभार.
पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार ।
मरे डूब कर पर कभी, प्यास सके न मार ।
प्यास सके न मार, नदी में बहते जाते ।
क्या खारा जलधार, आज जो अश्क बहाते ।
है रविकर खुदगर्ज, नहीं समझो बेइमानी ।
बढ़ जायेगा मर्ज, जरा सा पी लो पानी ।।
दिनेश की टिप्पणी-आपकी पोस्ट का लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
bhai
bura na mano holi hai |
kuchh bhi ganda nahin hai ki publish na kiya ja sake --
dubara gour karen--
Vishay se alag nahin hai bhai --
padhne ke bad jo dhyaan aaya svt: rach gaya |
aasha hai sthan denge --
पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार ।
मरे डूब कर पर कभी, प्यास सके न मार ।
प्यास सके न मार, नदी में बहते जाते ।
क्या खारा जलधार, आज जो अश्क बहाते ।
है रविकर खुदगर्ज, नहीं समझो बेइमानी ।
बढ़ जायेगा मर्ज, जरा सा पी लो पानी ।।
yah tippani link sahit yahan hai
dineshkidillagi.blogspot.com
बड़ी प्यारी अभिव्यक्ति रही यह ..बधाई शुक्ल जी !
Ravikar ji,
Satish Saxena ji,
आभार आपकी शुभकामनाओं का.
क्या बात है शुक्ला जी बहुत बढि़या...।
Dinesh Gautam ji,
आपके ब्लॉग पर आगमन और शुभकामनाओं का धन्यवाद/
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