हिन्दू , ईसाई , सिख है , मुसलमान यहाँ है,
मैं खोजता रहा हूँ कि इन्सान कहाँ है ?
मज़हब हैं , जातियाँ हैं, जातियों में जातियाँ,
इन जातियों में आपकी पहचान कहाँ है ?
मंदिर में वो कुछ और है , मस्जिद में कोई और ,
गुरुद्वारे , चर्च और है , भगवान कहाँ है ?
पत्थर तो पुज रहे हैं , आदमी तड़प रहा ,
इन्सान की इस कौम का ईमान कहाँ है ?
लीडर बहुत हैं , और बहुत से सियासी दल,
हर चूल्हा अलग हांडी अलग किश्म के चावल,
बाजीगरों का खेल , सबकी अपनी डुगडुगी ,
इस डुगडुगी में एकता की तान कहाँ है ?
सूबे के नाम पर, कहीं मज़हब के नाम पर ,
रुतबे, रसूख और सियासत के नाम पर ,
नफ़रत की क्यारियाँ हैं , क्यारियों में नफरतें ,
वो देश पे मिटने की , आन- बान कहाँ है ?
- एस.एन . शुक्ल
मैं खोजता रहा हूँ कि इन्सान कहाँ है ?
मज़हब हैं , जातियाँ हैं, जातियों में जातियाँ,
इन जातियों में आपकी पहचान कहाँ है ?
मंदिर में वो कुछ और है , मस्जिद में कोई और ,
गुरुद्वारे , चर्च और है , भगवान कहाँ है ?
पत्थर तो पुज रहे हैं , आदमी तड़प रहा ,
इन्सान की इस कौम का ईमान कहाँ है ?
लीडर बहुत हैं , और बहुत से सियासी दल,
हर चूल्हा अलग हांडी अलग किश्म के चावल,
बाजीगरों का खेल , सबकी अपनी डुगडुगी ,
इस डुगडुगी में एकता की तान कहाँ है ?
सूबे के नाम पर, कहीं मज़हब के नाम पर ,
रुतबे, रसूख और सियासत के नाम पर ,
नफ़रत की क्यारियाँ हैं , क्यारियों में नफरतें ,
वो देश पे मिटने की , आन- बान कहाँ है ?
- एस.एन . शुक्ल
34 comments:
सटीक प्रस्तुति ...इंसानियत रही ही नहीं है ...
सच है..न इंसान है..न भगवान है..न ईमान है...
बहुत सार्थक रचना सर..
सादर.
बहुत बेहतर कटाक्ष है
ढूंढते रह जायेंगे....
ढूंढ़े से नहीं मिलेगा।
सबको बाँट दिया मिलजुल कर,
अब मिलने की बाट जोहते..
sach kha insaan kha hai...bahut sundar rachna....
Sangita ji,
Vidya ji,
Alka ji,
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रियाओं के लिए आभारी हूँ.
SHIKHA JI,
MANOJ JI,
आभार आपके स्नेह का.
Pravin pandey ji,
Swati ji,
स्नेह मिला, धन्यवाद.
बहुत ही बढ़िया सर!
सादर
बहुत अच्छी रचना है, वास्तव में आज हम लोगों में मानवीय गुणों और राष्ट्रीय भावना का अभाव हो गया है, सुन्दर शब्दों के चयन के लिए साधुवाद.
insaniyat ka janaja nikalta rahta hai...
har pangti sunder hai.....
बशीर बद्र का एक शेर है..आपकी लाइने पढकर याद आ गया..
घरों पर नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
....
वाह..... वाह....बहुत ही उम्दा.....हैट्स ऑफ इसके लिए।
नफ़रत की क्यारियाँ हैं , क्यारियों में नफरतें ,
वो देश पे मिटने की , आन- बान कहाँ है?सटीक प्रस्तुति.
बेहतरीन सुंदर सार्थक सटीक रचना,
बहुत अच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...कामयाबी...
sarthak rachna!
badhai kabule\
बढ़िया व्यंग्य
बाजीगरों का खेल , सबकी अपनी डुगडुगी ,
इस डुगडुगी में एकता की तान कहाँ है ?
सचमुच देश की चिंता किसे है सब अपनी अपनी ढपली बजा रहे हैं...
Sangita ji,
vidya ji,
आपकी शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Alka Saraswat ji,
ब्लॉग पर पधारने और शुभकामनाओं के लिए कृतज्ञ हूँ.
Shikha ji,
Manoj ji,
Pravin pandey ji,
आप मित्रों के स्नेह का ह्रदय से आभार, धन्यवाद.
SWATI JI,
ATUL JI,
आपका स्नेह मिला, आभार.
Yashawant ji,
Purushottam ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का कृतग्य हूँ, धन्यवाद.
Mukesh ji,
Mridula ji,
स्नेह का आभारी हूँ.
Pashyanti shukla ji,
आपके ब्लॉग पर पधारने और स्नेह प्रदान करने का आभारी हूँ.
Imaran ji,
Nisha ji,
KHARE JI,
सकारात्मक टिप्पणी का आभारी हूँ.
Vandana ji,
Anita ji,
आप मित्रों की शुभकामनाओं का आभारी हूँ.
Shukl ji sadar abhivadan .... aj ki bhatkavvadi sanskriti pr bahut hi teekaha prahar kiya hai .....bahut hi sundar prastuti ....badhai sweekaren.
Navin Mani Tripathi ji,
aabhaaree hoon aapakee shubhakamanaaon kaa.
achchi gajal
Rajendra Sharma ji,
शुभकामनाएं मिलीं आभारी हूँ इस स्नेह का.
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