मुक्तक
(1)
हवस इनसान को अंधा बना देती है , ये सच है।
हवस किरदार को गंदा बना देती है , ये सच है।
हवस में आदमी , फिर आदमी रह ही कहाँ जाता ,
हवस , इज्जत को भी धंधा बना देती है , ये सच है।
(2)
अँधेरे हर कदम के सामने , हर ओर खतरा है।
समंदर है ये दुनिया और बस इनसान कतरा है।
वो किश्मत हो , कि दौलत हो कि इज्जत हो कि शोहरत हो,
बलंदी पर बशर जब भी पहुंचता है , तो खतरा है।
(3)
जवानी में , जमाने की किसे परवाह होती है।
वहाँ बस आग होती है, वहाँ बस आह होती है।
बहुत कम लोग बच पाते हैं, इस तूफाँ के मंज़र से,
बहुत मुश्किल जवानी की, ये जालिम राह होती है।
- एस . एन . शुक्ल
(1)
हवस इनसान को अंधा बना देती है , ये सच है।
हवस किरदार को गंदा बना देती है , ये सच है।
हवस में आदमी , फिर आदमी रह ही कहाँ जाता ,
हवस , इज्जत को भी धंधा बना देती है , ये सच है।
(2)
अँधेरे हर कदम के सामने , हर ओर खतरा है।
समंदर है ये दुनिया और बस इनसान कतरा है।
वो किश्मत हो , कि दौलत हो कि इज्जत हो कि शोहरत हो,
बलंदी पर बशर जब भी पहुंचता है , तो खतरा है।
(3)
जवानी में , जमाने की किसे परवाह होती है।
वहाँ बस आग होती है, वहाँ बस आह होती है।
बहुत कम लोग बच पाते हैं, इस तूफाँ के मंज़र से,
बहुत मुश्किल जवानी की, ये जालिम राह होती है।
- एस . एन . शुक्ल
6 comments:
सर मुक्तक के रूप में बहुत सुंदर तरीके से खरी बातें कह दी ।बहुत बढियां ।
राह बड़ी ही कठिन है साधो..
.सार्थक बात कही है आपने दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब.
Bahut sundar jajbat.
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