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Wednesday, June 27, 2012

(155) सभी बेपर्द कर डालो

  शकर कैसे भला छोड़ेगी पीछा , और क्यों छोड़े ,
  तुम्हीं थे जिसने कैथे और जामुन काट डाले हैं  /

 तुम्हीं कहते ज़हर फैला है चारों ओर नफ़रत का ,
 तुम्हीं  ने  आस्तीनों  में , विषैले  नाग  पाले  हैं  /

  लबारों और मक्कारों को , कितनी बार परखोगे ,
  ये तन से खूब उजले हैं , मगर अंदर  से काले हैं /

  वो छत्तीस लाख के सन्डास में , पेशाब करते हैं ,
  यहाँ छब्बीस रुपये रोज की आमद भी लाले हैं  /

  ज़बानें  लपलपाते  भेड़िये  हैं ,  ये  दरिंदे   हैं ,
  ये आदमखोर हैं , मज़लूम ही इनके निवाले हैं /

  उठाओ आँधियाँ , अब और रस्ता भी नहीं कोई ,
  सभी बेपर्द कर डालो , जो शैतानों की चाले हैं  /

                                     - एस . एन . शुक्ल 

8 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाट कटाक्ष..

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Bahut Badhiya Panktiyan...

Anita said...

जामुन और कैथ अब बीते जमाने की शै हो गए हैं...आज के युग की सच्चाई है नित नए रोग...यथार्थवादी कविता...

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रिय शुक्ल जी ..करारा चांटा दागियों पर ..और मधुमेह की अच्छी दवा भी ..सुन्दर रचना ....जय श्री राधे
आभार -भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण

S.N SHUKLA said...

Dr. Roopchandra shastri ji,
Pravin pandey ji ,

आभार आप मित्रों के स्नेह का .

S.N SHUKLA said...

Dr. Monika sharma ji,
Anita ji,

स्नेह और समर्थन मिला , आभार

S.N SHUKLA said...

Surendra shukla ji,

आपका समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना.