वक्त का मारा समझता है
कोई नादां , कोई दाना , कोई प्यारा समझता है ,
कोई भटका हुआ कहता है , आवारा समझता है /
मेहरबां वक्त हो जिस पर , वो क्या समझे , वो क्या जाने ,
है कैसा वक्त होता , वक्त का मारा समझता है /
नज़र का फेर है , जिस आँख पर जैसा लगा चश्मा ,
उजाले को अंधेरा , चाँद को तारा समझता है /
ये आदत में नहीं है , इसलिए निकले नहीं आँसू ,
मगर कितनी तपिश है , दिल का अंगारा समझता है /
वो कहते हैं , कि उनको नीद ही आती नहीं शब् भर ,
है मतलब नीद का क्या , यह थका - हारा समझता है /
जिसे होता है मतलब , सिर्फ अपनी खुदपरस्ती से ,
वो हर इन्सान को - इन्सां नहीं , चारा समझता है /
मुबारक हो तुम्हें दुनिया तुम्हारी , तंग दिल वालों ,
ये बंजारा तो , अपना ही जहां सारा समझता है /
- एस.एन. शुक्ल
18 comments:
मुबारक हो
बहुत सुंदर गज़ल.
बधाई.
बहुत उत्कृष्ट ग़ज़ल काबिले तारीफ
बहुत सुंदर
वो कहते हैं , कि उनको नीद ही आती नहीं शब् भर ,
है मतलब नीद का क्या , यह थका - हारा समझता है /
जिसे होता है मतलब , सिर्फ अपनी खुदपरस्ती से ,
वो हर इन्सान को - इन्सां नहीं , चारा समझता है /
प्रिय शुक्ल जी बहुत सुन्दर ...जिसके पाँव न फटी विवाई वो क्या दर्द समझता है ??
भ्रमर ५
बिन अनुभव नहिं होत सयाना..
जिसे होता है मतलब,सिर्फ अपनी खुदपरस्ती से ,
वो हर इन्सान को इन्सां नहीं, चारा समझता है
बधाई,,,,खुबशुरत गजल,,,,,,
शुक्ला जी,मै हर दम आपके पोस्ट आता हूँ,
किन्तु आप नही आते,,,आइये स्वागत है
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
जिसे होता है मतलब,सिर्फ अपनी खुदपरस्ती से ,
वो हर इन्सान को इन्सां नहीं, चारा समझता है
बधाई,,,,खुबशुरत गजल,,,,,,
शुक्ला जी,मै हर दम आपके पोस्ट आता हूँ,
किन्तु आप नही आते,,,आइये स्वागत है
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
बहुत ही बेहतरीन और अर्थपूर्ण रचना...
बहुत बढ़िया..
:-)
जिस पर गुजरे वो ही जाने... और न समझे कोय.....
खूब्सूरत रचना सर
आभार
बहुत शानदार अभिव्यक्ति .....
शुभकामनाये ....
वाह....
सुन्दर ..
बहुत सुन्दर गज़ल.......
सादर
अनु
shukla ji waah maja aa gya... bahut hi shandar
Rachana ji,
Rajesh kumari ji,
NITYANAND JI,
AAPAKE SNEH KAA AABHAAREE HOON.
Surendra shukla ji,
Pravin pandey ji,
Dheerendra ji,
aap mitron kee shubhakaamanaayen mileen , aabhaar.
Reena maurya ji,
Anjani kumar ji,
Karuna ji,
aap mitron kaa sneh, samarthan paakar kritaarth huaa.
वेहतरीन ग़ज़ल.. गहरे भाव ...सादर.
Lokendra singh ji,
Kewal joshi ji,
आभार आप मित्रों के स्नेह का .
Wo kehte hai hame neend hi nahi aati shab bhar..hai neend ka matlab kya, ye thaka haara samjhta hai..
Wah!!!
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