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कौन जश्न मनाये भारत की आजादी का,
गरीब मातम मना रहा है अपनी बर्बादी का/
रोंकता नहीं है कोई दंगे फसाद की आंधी को,
सुख चैन लुटता जा रहा है भारत की आबादी का/
जान की की कीमत कुछ भी नहीं है जालिमों के पास,
ऐसे ही क़त्ल किया था भारत की शहजादी का/
चेहरे पर कुछ और दिल में कुछ और है,
जनता को बस लूट रहे हैं, कपड़ा पहनकर खादी का/
ऐश-ओ-आराम से रहने वालों कभी देखो आकर,
है आज गरीब नंगा और भूंखा भारत की वादी का/
एस देश में देश द्रोहियों की कमी नहीं है रवी,
सबके चेहरें छुपे हैं नाम बदनाम है आतंकवादी का/
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खून से खिलती है होली आज हिन्दुस्तान में,
खून से छपकर है निकला अखबार हिन्दुस्तान में/
खून का प्यासा है खंजर जल रही हैं बस्तियां,
बच्चा बच्चा सो रहा है आज हिन्दुस्तान में/
बह रहा है नालियों में आज लोंगों का लहू,
खून पानी बन गया है आज़ाद हिन्दुस्तान में/
ऐ जालिमों हर खून करने से पहले सोच लो,
एक दिन तुम सबका होगा, खून हिन्दुस्तान में/
मैं रवि का नूर हूँ, ये सोचकर हैरान हूँ/
मर चुकी इंसानियत आज़ाद हिन्दुस्तान में/
रवि शंकर उपाध्याय
5 comments:
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं बधाई स्वीकारें।
अपने भी दिन बहुरेंगे ही।
बहुत सुन्दर रचना! आभार...!
बहुत बढ़िया.....
उत्कृष्ट रचना.
अनु
रवि जी... शानदार
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