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Friday, February 3, 2012

(१३६) इलाज भी जूता है /

        (१३६) इलाज भी जूता है /









सब  कहते  भ्रष्टाचार  बहुत , यह  लोकतंत्र  बीमार  बहुत ,
सब कहते समय खराब ,और सब कहते अत्याचार बहुत /
औरों की  देखादेखी  जब ,  क्षमता  से कई  गुना चाहत ,
तो फिर कैसे मिल पायेगी ,इस भ्रष्ट व्यवस्था से राहत ?
सब चाह रहे फिर भगत सिंह , सब चाह रहे फिर हों सुभाष ,
सब  चाह  रहे  आज़ाद  और  बाघा  जतीन  हों  आस-पास /
वे  पैदा  हों, संघर्ष  करें , पर  केवल  औरों  के  घर  हों  ,
अम्बानी, टाटा , डालमिया , बिड़ला हों  तो  मेरे घर हों /
बस यही चाह , इस लोकतंत्र की सफल राह का काँटा है,
सोचो! खुद को  तुमने  ही तो , सांचों - खेमों में बांटा है /
मीठा हप- हप , कड़वा थू- थू , उपदेशों की बांचें पोथी ,
बाहर उजले, अन्दर मैले , यह कैसी राजनीति थोथी ?
जब हो चुनाव तो , जाति - धर्म की करते हो पैरोकारी ,
खुद जान - बूझकर पैदा की, अब कहते इसको बीमारी /
बोलो  संसद  में  किसने  भेजे, चोर ,  लुटेरे ,  जमाखोर ,
जब बार- बार गलती अपनी , तो मचा रहे क्यों व्यर्थ शोर ?
यह भ्रष्टाचार एक दिन में ,  नाले  से सागर  नहीं  बना ,
यह अनाचार - रिश्वतखोरी भी अनायास तो नहीं तना /
यह देन तुम्हारी खुद  की है , तुमने ही  इसको  पोषा है ,
लेकिन जब खुद को दर्द हुआ , तो खुद तुमने ही कोसा है /
मैं भी अन्ना - मैं भी अन्ना , सड़कों पर चिल्लाने वालों, 
झूठे  सपनों,  थोथे  नारों से ,  मन  को  बहलाने  वालों /
तुम में से ऐसे कितने हैं , जो खुद हैं पाक- साफ़  बोलो,
जब खुद का ही दामन मैला, तो पहले तोलो फिर बोलो /
पहले अपना मन साफ़ करो, अपनी गलती भी स्वीकारो ,
फिर गलत दिखे चाहे कोई , गिनकर सौ- सौ जूते मारो  /
जैसे व्यभिचारी , चोर  और  मिर्गी  की औषधि जूता है ,
बस उसी तरह इस भ्रष्ट व्यवस्था का इलाज भी जूता है /
                                        - एस.एन.शुक्ल 

54 comments:

Udaya said...

सामयिक राजनीति और नेताओं को परिभाषित सा करती है ये कृति; बहुत खूब!

RITU BANSAL said...

अंतिम दो पंक्तियों में निचोड़ है ..बहुत अच्छे !
kalamdaan.blogspot.in

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

देश के राजनैतिक परिवेश और लोगों के मन की भावनाओं को सटीक शब्द दिए हैं .. सुन्दर प्रस्तुति

vidya said...

बहुत बढ़िया सर...
सच है! लातों के भूत है ये...बातों से कहाँ मानते हैं..

सादर.

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

बहुत सुन्दर |

प्रवीण पाण्डेय said...

सच पर गहरा कटाक्ष करती कविता..

लोकेन्द्र सिंह said...

बहुत बढिय़ा।

dinesh aggarwal said...

शुक्ला जी कमाल की रचना, सीधे हृदय में उतर गई।
अत्यधिक बधाई......
कृपया इसे भी पढ़े-
नेता, कुत्ता और वेश्या

S.N SHUKLA said...

Udaya ji,
Ritu ji,

उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Sangita ji,
Vidya ji,

आपकी सराहना से बढ़ता है मेरा उत्साह,धन्यवाद.

S.N SHUKLA said...

Amarnath Madhur ji,
Pravin pandey ji,
Dinesh Agarwal ji,

उत्साहवर्धन का ह्रदय से आभारी हूँ.

Anonymous said...

शुक्ला जी.....हमारे ब्लॉग....कलम का सिपाही पर आपकी टिप्पणी का बहुत शुक्रिया.....आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.....पहली ही पोस्ट बहुत अच्छी लगी.....व्यंग्यात्मक लहजे में ये कविता बहुत सीधी और सटीक है और सत्य का समावेश लिए हुए है.......बधाई इस सुन्दर पोस्ट के लिए|

sangita said...

सार्थक व् करारा व्यंग्य है बधाई.और धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने हेतु .सदा स्वागत है|

sangita said...

सार्थक व् करारा व्यंग्य है बधाई.और धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने हेतु .सदा स्वागत है|

Mamta Bajpai said...

बेहतरीन व्यंग ...सच है सबसे पहले स्वयं ही बदलने की जरुरत हा बहुत बढिया रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

शुक्ला जी, अब बस यही एक रास्ता बचा है,
बहुत ही सुंदर प्रस्तुती,आपकी रचना बहुत अच्छी लगी,..... .

MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

Maheshwari kaneri said...

भ्रष्टाचार जैसी बीमारी का अच्छा इलाज बताया..बहुत सटीक..शुक्ला जी.बधाई

meeta said...

samsaamyik aur vastavikta se bhari kriti . aam aadmii ki bhavnaon ko aapne apne shabdon mein behtareen tareeke se dhala hai .

Naveen Mani Tripathi said...

teekha prahar ....prabhavshali ...sateek....badhai.

गीता पंडित said...

सम सामयिक सटीक रचना ...
बहुत अच्छा लिखते हैं आप लय बद्ध

बधाई आपको...

रचना दीक्षित said...

पहले अपना मन साफ़ करो, अपनी गलती भी स्वीकारो ,
फिर गलत दिखे चाहे कोई , गिनकर सौ- सौ जूते मारो /
जैसे व्यभिचारी , चोर और मिर्गी की औषधि जूता है ,
बस उसी तरह इस भ्रष्ट व्यवस्था का इलाज भी जूता है /

सटीक इलाज़ बताया इस सामयिक प्रस्तुति के माध्यम से.

मेरा मन पंछी सा said...

बेहतरीन सार्थक अभिव्यक्ती है

Kewal Joshi said...

सटीक कटाक्ष.

S.N SHUKLA said...

IMRAN ANSARI JI,
ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत और उत्साहवर्धन के लिए आभार.

S.N SHUKLA said...

Sangita ji,
Mamata Bajapai ji,


आप शुभचिंतकों से हमेशा इसी स्नेह की अपेक्षा रही है, आभार.

S.N SHUKLA said...

Dheerendra ji,
Maheshwari kaneri ji,
.
आप मित्रों के स्नेहाशीष का ह्रदय से आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

MEETA JI,
ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत और प्रशंसा के लिए आभार.

S.N SHUKLA said...

Navin mani tripathi ji,
Gita Pandit ji,

आपका स्नेह मिला , आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Reena Maurya ji,
Kewal joshi ji,
आपके आगमन और उत्साहवर्धन के लिए आभार.

Yashwant R. B. Mathur said...

सहमत हूँ आपकी बात से ।

सादर

aapkamanoj said...

अच्छी रचना है !! मेरी समझ से सरकार और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का कारगर इलाज वोट रूपी जूता और कारगर पत्रकारिता और न्यायव्यवस्था है |
आपके स्नेह एवं मेरे ब्लॉग पोस्ट http://aapkamanoj.blogspot.in/ से जुड़ने के लिए धन्यवाद !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

शुक्ला जी, आप कमेंट्स का जबाब खुद अपने ही पोस्ट पर देते है,शिष्टाचार ये नही कहता,..धन्यबाद

वाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
नई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...

Ramakant Singh said...

simple but straight and deep thought.
very nice lines.

Rakesh Kumar said...

अरे वाह!
कमाल की प्रस्तुति है आपकी,शुक्ला जी.
सही कहा आपने,
भृष्टाचार का इलाज भी जूता है.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

लोकेन्द्र सिंह said...

इलाज भी जूता है और चप्पल भी... करारी कविता।

महेन्‍द्र वर्मा said...

भ्रष्टाचार भी एक प्रकार की मिर्गी है, इसका इलाज भी जूते से करना चाहिए।

मजेदार रचना।

India Darpan said...

बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना.....
खबरनामा की ओर से आभार

Kailash Sharma said...

पहले अपना मन साफ़ करो, अपनी गलती भी स्वीकारो ,
फिर गलत दिखे चाहे कोई , गिनकर सौ- सौ जूते मारो /

...बहुत सही कहा है..ईमानदारी का पाठ पहले हमें स्वयं सीखना होगा..

Anonymous said...

कटाक्ष करती कविता.. सुन्दर प्रस्तुति

S.N SHUKLA said...

Yashawant mathur ji,
Manoj ji,

आप शुभचिंतकों से सदैव इसी स्नेह की अपेक्षा है.

S.N SHUKLA said...

Dhirendra ji,
आपकी शिकायत जायज है ,किन्तु मैं आप मित्रों के ब्लॉग पर भी पहुँच कर टिप्पणी करता हूँ.

S.N SHUKLA said...

Ramakant singh ji,

आपके ब्लॉग पर आगमन और उत्साहवर्धन का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Rakesh kumar ji,
Lokendr singh ji,

स्नेह मिला, आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Mahendra verma ji,
Kailash Sharma ji,

आप शुभचिंतकों से सदैव इसी स्नेह की अपेक्षा है.

ashok andrey said...

aaj ki rajnetik pristhition par aapne achchha vyang kiya hai jo kaphi prabhavshali ban pada hai,jiske liye main aapko badhai deta hoon.

Jeevan Pushp said...

सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !

विभा रानी श्रीवास्तव said...

पहले अपना मन साफ़ करो, अपनी गलती भी स्वीकारो ,
फिर गलत दिखे चाहे कोई , गिनकर सौ- सौ जूते मारो /
जैसे व्यभिचारी , चोर और मिर्गी की औषधि जूता है ,
बस उसी तरह इस भ्रष्ट व्यवस्था का इलाज भी जूता है
यह नियम बहुत पहले लागू होना चाहिए था.... !
खैर.... !
जब जागो तभी सवेरा ,अभी ही से शुरू हो.... !!

विभा रानी श्रीवास्तव said...

पहले अपना मन साफ़ करो, अपनी गलती भी स्वीकारो ,
फिर गलत दिखे चाहे कोई , गिनकर सौ- सौ जूते मारो /
जैसे व्यभिचारी , चोर और मिर्गी की औषधि जूता है ,
बस उसी तरह इस भ्रष्ट व्यवस्था का इलाज भी जूता है
यह नियम बहुत पहले लागू होना चाहिए था.... !
खैर.... !
जब जागो तभी सवेरा ,अभी ही से शुरू हो.... !!
मैं आपके ब्लॉग को फालो कर चुकी हूँ .... :)

इस्मत ज़ैदी said...

सब चाह रहे आज़ाद और बाघा जतीन हों आस-पास /
वे पैदा हों, संघर्ष करें , पर केवल औरों के घर हों ,
अम्बानी, टाटा , डालमिया , बिड़ला हों तो मेरे घर हों /
बस यही चाह , इस लोकतंत्र की सफल राह का काँटा है,

bahut badhiya !!

S.N SHUKLA said...

Ashok Andrey ji,
आपके ब्लॉग आगमन का स्वागत, पक्ष में प्रतिक्रिया का बहुत- बहुत आभार.

S.N SHUKLA said...

Manish ji,
Vibha ji,

आपके स्नेह और समर्थन का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Ismat Zaidi ji,
आपके ब्लॉग आगमन , प्रतिक्रिया का बहुत- बहुत आभार.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

तीखा और सटीक...

S.N SHUKLA said...

S.M.Habeeb ji,

आपका स्नेह मिला, आभार.