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Wednesday, February 8, 2012

(137) मुक्तक
















                      (137)   मुक्तक 
मुल्क  यह सेकुलर है तो फिर हदबरारी किसलिए ,
जातियों   की   खेमेबंदी  ,   तरफदारी   किसलिए , 
हर सियासतबाज़  की ख्वाहिश बने हुक्काम खुद ,
वरना  ये  फिरकापरस्ती ,  सेंधमारी   किसलिए ? 
                   - २-
अब सियासत, महज़ वोटों की तिजारत हो गई ,
और इलेक्शन , पाँच सालाना जियारत हो गई ,
बाप का बेटा का बेटा , याकि बेटी और दामाद ,
सारी पब्लिक , चंद कुनबों की विरासत हो गई /
                   -३-
गज़नबी,  गौरी , सिकंदर  ने तुझे  लूटा कभी ,
और फिर तैमूर , मुगलों का  कहर टूटा कभी ,
फ्रेंच , डच , अंग्रेज , अब देशी दरिंदों का कहर ,
देश !  तेरे सब्र  का  पर  बाँध क्या टूटा कभी ?
                 -४-
या खुदा , भगवान, मौला ,   गाड या  परवरदिगार ,
देवियों, देवों, फरिश्तों , पीर-ओ-मुर्शिद -ए-मज़ार ,
हे महापुरुषों  की  आत्माओं  , कहाँ  सोयी हो तुम ,
क्यों नहीं तुम तक पहुँचती , दीन- दुखियों की पुकार ?
                 -5-
पाप  का साम्राज्य   बढ़ता  जा रहा हर ओर है  ,
रो  रही   ईमानदारी  , मौज  में  हर  चोर  है ,
झूठे, मक्कारों , दरिंदों  के लिए दौलत के ढेर ,
और सुविधाओं भरा , हर भ्रष्ट - रिश्वतखोर है / 
                                - एस.एन .शुक्ल

34 comments:

शारदा अरोरा said...

behad khubsurati se apni baat kah di hai ...baat me daam hai...

गिरधारी खंकरियाल said...

भ्रष्ट ही सभी सुबिधाओं का उपयोग कर रहा है आमजन परेशान है

प्रवीण पाण्डेय said...

लोकतन्त्र के हिस्से में यह भी देखना लिखा था..

shikha varshney said...

एक एक पंक्ति करारे तमाचे सी.

vidya said...

सशक्त रचना..
काश आपकी आवाज़ जन जन तक पहुँचती...

सादर.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





गज़नबी, गौरी , सिकंदर ने तुझे लूटा कभी ,
और फिर तैमूर , मुगलों का कहर टूटा कभी ,
फ्रेंच , डच , अंग्रेज , अब देशी दरिंदों का कहर ,
देश ! तेरे सब्र का पर बाँध क्या टूटा कभी ?

आऽऽऽहाऽऽऽह… ! क्या कमाल लिखा है ! नमन !

या खुदा , भगवान, मौला , गाड या परवरदिगार ,
देवियों, देवों, फरिश्तों , पीर-ओ-मुर्शिद -ए-मज़ार ,
हे महापुरुषों की आत्माओं , कहाँ सोयी हो तुम ,
क्यों नहीं तुम तक पहुँचती , दीन- दुखियों की पुकार ?


बहुत प्रवाहमयी रचना !

हर मुक्तक शानदार ! शिल्प और कथ्य की कसावट के लिए विशेष बधाई !
आम भारतीय की भावनाओं को उकेरा है आपने…

आदरणीय एस.एन .शुक्ल जी
सादर नमन है आपकी लेखनी को !


आपकी रचनाओं से इस देश के सोये हुए आम नागरिकों को प्रेरणा और दिशा मिले … तथास्तु !

हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर और सशक्त पोस्ट है शुक्ला जी ।

Kewal Joshi said...

वर्तमान बिडम्बनाओं का आयना है ये रचना..

Madhuresh said...

बहुत ही सार्थक पोस्ट. कामना करता हूँ कि जल्द ही हमारा लोकतंत्र इन गंदगियों से मुक्त हो !

Madhuresh said...

Sir, Bloggers mein aane ka mera ek uddeshya tha 'Aarogyam', http://aarogyam-nature.blogspot.com/2012/02/trans-fats.html
meri baatein zyada logon tak nahi pahunch sakti.. aapka samarthan milega to bahuton ka kalyan ho sakta hai ...
snehakankshi
Madhuresh

डॉ. मोनिका शर्मा said...

एकदम सटीक ....प्रभावित करती पंक्तियाँ

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut hi sundar trike se apne desh ki durdsha ka vrnan kiya hai....prastuti sargarbhit hai.

Amrita Tanmay said...

सशक्त प्रवाहमयी रचना|

S.N SHUKLA said...

Sharada Arora ji,
Girdhari Lal ji,

आप शुभचिंतकों के स्नेहाशीष का ह्रदय से आभार.

S.N SHUKLA said...

Pravin pandey ji,
Shikha ji,

आपके स्नेह से कृतार्थ हुए शब्द, आभार.

S.N SHUKLA said...

Vidya ji,
Rajendra Swarnakar ji,
Imaran Ansari ji,

आप मित्रों के स्नेह का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Kewal joshi ji,
Madhuresh ji,
Monika Sharma ji,

आपकी शुभकामनाएं मिलीं , आभार.
.

S.N SHUKLA said...

Nisha Maharana ji,
आपके समर्थन और शुभकामनाओं का ह्रदय से आभारी हूँ.

Maheshwari kaneri said...

बहुत सटीक और करारी रचना...

sumukh bansal said...

मुल्क यह सेकुलर है तो फिर हदबरारी किसलिए ,
जातियों की खेमेबंदी , तरफदारी किसलिए

great work..
liked a lot...

Human said...

इतने अच्छे मुक्तक हेतु सूचित करने के लिए आभार । वाकई मेँ जोरदार भावनाओँ को जोरदार शब्दोँ मेँ व्यक्त किया है आपने ।

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति । धन्यवाद ।

रचना दीक्षित said...

पाप का साम्राज्य बढ़ता जा रहा हर ओर है ,
रो रही ईमानदारी , मौज में हर चोर है ,
झूठे, मक्कारों , दरिंदों के लिए दौलत के ढेर ,
और सुविधाओं भरा , हर भ्रष्ट - रिश्वतखोर है /

चुनावी माहौल में आज के इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है आपकी रचना. एक जागरूक देशवासी होने और उसके कर्तव्यों का निर्वाह करती प्रस्तुति के लिये आप अवश्य बधाई के पात्र है.

महेन्‍द्र वर्मा said...

या खुदा , भगवान, मौला , गाड या परवरदिगार ,
देवियों, देवों, फरिश्तों , पीर-ओ-मुर्शिद -ए-मज़ार ,
हे महापुरुषों की आत्माओं , कहाँ सोयी हो तुम ,
क्यों नहीं तुम तक पहुँचती , दीन- दुखियों की पुकार ?

आक्रोशित मन के उद्गार...।
कभी न कभी , कोई न कोई तो जरूर सुनेगा।

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

S.N SHUKLA said...

Maheshwari kaneri ji,
Sumukh Bansal ji,
HUMAN JI,
आपके स्नेह और शुभकामनाओं का बहुत- बहुत आभार .

S.N SHUKLA said...

pREM JI,
rACHANA dIXIT JI,

आप मित्रों के स्नेह का आभारी हूँ.

S.N SHUKLA said...

Mahendra verma ji,
SADA JI,

आपका स्नेह मिला, आभार.

Khare A said...

aghaat karti hui kavita!

sharam ki bat he ham snasar ke sabe bade loktantr me rehte hain jo ki aaj "JOkeTantra" ban chuka he!

S.N SHUKLA said...

KHARE JI,

आपके ब्लॉग पर आगमन और शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

संध्या शर्मा said...

सटीक और सशक्त पोस्ट...

S.N SHUKLA said...

Sandhya Sharma ji,

आपकी स्नेहिल शुभकामनाओं का आभारी हूँ.

avanti singh said...

waah! bahut hi umda....

S.N SHUKLA said...

Avanti Singh ji,

आभार आपकी शुभकामनाओं के लिए.