इस अमा की रात को वरदान कैसे मान लें हम.
है प्रगति पथ राष्ट्र का अभियान कैसे मान लें हम .
स्वार्थ, लिप्सा, कुटिलता, कुविचार हर मन में भरा है
अराजकता, अनृत, छल, अन्याय से पूरित धरा है
स्वहित पोषण ही जहाँ पर नीति शासक वर्ग की हो
उस स्वशासन को भला वरदान कैसे मान लें हम .
हम प्रगति पथ अग्रसर हैं देश में नित घोषणायें
किन्तु अब तक बेअसर है नीतियाँ सब योजनायें
योजना या घोषणा का षष्ठमांश कृतित्व दुष्कर
चढ़ सकेंगे प्रगति के सोपान कैसे मान ले हम .
वेश, भूषा, तत्त्व, दर्शन, धर्म आयातित जहाँ पर
और अपना धर्म, भाषा, वेश ही शापित जहाँ पर
अनुकरण होता जहाँ पर दूसरों की सभ्यता का
राष्ट्र का होगा वहां पर उत्थान कैसे मान लें हम .
नीति सिखलाते हमें अब हैं उजालों के लुटेरे
बस इसी से नीति पथ , सनमार्ग पर बादल घनेरे
दम्भ, हिंसा, द्वेष, ईष्र्या से प्रदूषित आज जन मन
इस निशा में उदय होगा भानु कैसे मान लें हम .
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