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Saturday, December 29, 2012

(174) झूठ बोलो

                   

         "झूठ बोलो"

                                  

सच ! सियासत क्या,अदालत में भी अब मजबूर है,
झूठ  बोलो,  झूठ  की  कीमत  बहुत  है  आजकल।

जो  शराफत  ढो  रहे  हैं , हर  तरह  से  तंग  हैं ,
बदगुमानों की कदर, इज्जत बहुत है आजकल।

छोड़िये ईमानदारी , छोड़िये रहम-ओ-करम,
लूट कर भरते रहो घर, मुल्क में ये ही धरम ,

हर तरफ  बदकार,  दंगाई ,  फसादी,  राहजन ,
इनपे ही सरकार की रहमत बहुत है आजकल। 

जुल्म, बेकारी,गरीबी, मुफलिसी के देश में,
हैं लुटेरों  की जमातें , साधुओं  के वेश  में ,

हर  हुकूमत  की बड़ी कुर्सी पे,  एक मक्कार है,
सिर झुकाओ, इनकी ही कीमत बहुत है आजकल।

                                                -एस .एन .शुक्ल 

10 comments:

Anonymous said...

वर्तमान की साकार प्रस्तुति

कालीपद "प्रसाद" said...

सामयिक ,सार्थक ,सुन्दर रचना
मेरी नई पोस्ट : निर्भय ( दामिनी ) को श्रद्धांजलि
http://vicharanubhuti.blogspot.in

Ramakant Singh said...

एक एक शब्द सच्चाई को बयान करता .आज की तस्वीर

शूरवीर रावत said...

आपके ब्लॉग का शीर्षक ‘मेरी कवितायें’ की जगह ‘मशाल’ ‘क्रान्ति’ या ऐसा ही कुछ होता तो और भी सार्थकता होती।
वास्तव में आपकी रचनायें एक जोश पैदा करती है।
अलख जगाती इस रचना के लिये आभार।

Aditi Poonam said...

सार्थक,सम -सामयिक सत्य से रूबरू करवाती रचना
धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

सन्नाट है, यही नियम हो चला है।

लोकेन्द्र सिंह said...

बढ़िया रचना

Pratibha Verma said...

बहुत उम्दा प्रस्तुति ...

Rohitas Ghorela said...

बहुत अच्छे ...सार्थक पोस्ट

ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा

Deepak Kripal said...

umda aur sateek kavita kahi hai apne..