ये ऐसा मुल्क है , हर शख्श जुल्म सहकर भी ,
ज़ुबान होते हुए , बेजुबान है यारों /
मस्जिदों , मंदिरों , गिरिजाघरों , गुरुद्वारों में ,
सभी की अपनी , मजहबी दुकान है यारों /
आदमी ही यहाँ , बिकता - खरीदा जाता है ,
ये अपने मुल्क का , सियासतान है यारों /
इतने फिरके , कि इन्हें गिन नहीं सकता कोई ,
और दावा ये , एकता की शान हैं यारों /
भीड़ है , मेले हैं , रेले हैं , रैलियाँ हैं मगर ,
ढूँढता हूँ , कहाँ हिन्दोस्तान है यारों /
ये सौ करोड़ से ज्यादा हैं , मगर भेड़ों से ,
इसलिए ! हुक्मरान , बेईमान हैं यारों /
कहीं भी कुछ भी करो , गालियाँ दो , उगलो ज़हर ,
मुल्क है या कि ये , उगालदान है यारों /
-एस.एन. शुक्ल
किन्हीं व्यक्तिगत कारणों से लगभग डेढ़ माह तक स्रजन बाधित रहा , पुनः आप मित्रों का स्नेह पाने के लिए उपस्थित हूँ / आशा है हमारे मित्र हमें क्षमा करेंगे /
13 comments:
कहीं भी कुछ भी करो , गालियाँ दो , उगलो ज़हर ,
मुल्क है या कि ये , उगालदान है यारों
बहुत खूब सुंदर रचना,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
कोई बात नहीं साहब जिंदगी कई बार कहीं कहीं उलझा देती है... खैर आपने आते ही धमाका कर दिया.. अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया आपकी इस रचना ने...
जी बहुत ही खूबसूरत कविता ....शुक्रिया ..
सपाट और सन्नाट कटाक्ष..
कहीं भी कुछ भी करो , गालियाँ दो , उगलो ज़हर ,
मुल्क है या कि ये , उगालदान है यारों /
आप हम मिलकर ही तो उगालदान बना रहे हैं
कविता के अनुरूप ऊपर का चित्र .... ?
बस उगलदान न बने यही कामना है।
behtreen rachna,
bahut samay baad blog par active hone ke liye badhai. aur kya-kya naya srejit kiya hai, is beech, intzaar rahega apki rachnaon ka apke hi blog par!!!
कहीं भी कुछ भी करो , गालियाँ दो , उगलो ज़हर ,
मुल्क है या कि ये , उगालदान है यारों......kya khoob hai!! badhai.
समसामयिक गहरी रचना !!
सादर .
BEAUTIFUL LINES TO THINK POSITIVE AND WORK PLEASE MAIL THESE THREE POST FOR COLLECTION .I LOVE IT SO MUCH.
Dheerendra ji,
Lokendra singh ji,
B. S. Gurjar ji,
स्नेह और समर्थन मिला , आभार
Pravin pandey ji,
Vibha ji,
Manoj ji,
आभार आप मित्रों के स्नेह का .
Sunita mohan ji,
Meeta ji,
Ramakant singh ji,
आपका समर्थन पाकर सार्थक हुयी रचना.
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