कौन करता है इबादत , सब तिजारत कर रहे ,
ख्वाहिशें पसरी हुई हैं , हर इबादतगाह में।
भीड़ से ज्यादा कहीं अब , मन्नतों की भीड़ है,
चर्च, गुरुद्वारों, शिवालों, मस्जिद-ओ-दरगाह में।
कितनी खुदगर्जी , कि सौदेबाजी भी भगवान से,
भीख देते , रहमतें हैं देखते अल्लाह में।
मजहबों के रहनुमा , धर्मोपदेशक , पादरी ,
सबके सब बगुला भगत, दौलत है सबकी चाह में।
धर्म भी धंधा हुआ , सब कुछ बिकाऊ है यहाँ ,
चलना मुश्किल हो रहा, पगडंडियों की राह में।
बेअकल , बेभाव बिकते रोज इस बाज़ार में ,
फिर भी कितनी भीड़, हर दूकां पे ख्वाहम-ख्वाह में।
- एस .एन .शुक्ल
ख्वाहिशें पसरी हुई हैं , हर इबादतगाह में।
भीड़ से ज्यादा कहीं अब , मन्नतों की भीड़ है,
चर्च, गुरुद्वारों, शिवालों, मस्जिद-ओ-दरगाह में।
कितनी खुदगर्जी , कि सौदेबाजी भी भगवान से,
भीख देते , रहमतें हैं देखते अल्लाह में।
मजहबों के रहनुमा , धर्मोपदेशक , पादरी ,
सबके सब बगुला भगत, दौलत है सबकी चाह में।
धर्म भी धंधा हुआ , सब कुछ बिकाऊ है यहाँ ,
चलना मुश्किल हो रहा, पगडंडियों की राह में।
बेअकल , बेभाव बिकते रोज इस बाज़ार में ,
फिर भी कितनी भीड़, हर दूकां पे ख्वाहम-ख्वाह में।
- एस .एन .शुक्ल
12 comments:
सही है कि सब कुछ बिकाऊ है यहां।
कुछ दिनों से ब्लॉग पढ़कर, ऊब जाता था बहुत।
आपको पढ़ शब्द सहसा, निकल पढता 'वाह' में।
.......... एक-एक शब्द जमाकर रखा हुआ। श्रेष्ठतम रचना के लिए साधुवाद।
वास्तविक स्थिति का सुन्दर गजल ,बधाई
कभी कभी मेरे ब्लॉग पर आया करें.आनंद आयगा .आभार
भैया जी बड़े दिन बाद इतनी साफगोई से कहते देखकर विश्वास नहीं हो रहा कि ऐसा भी पढ़ा जा सकता है
कितनी खुदगर्जी , कि सौदेबाजी भी भगवान से,
भीख देते , रहमतें हैं देखते अल्लाह में।
bahut sundar aabhar हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
भीड़ वहाँ, बाज़ार जहाँ है
बहुत खूब ... लाजवाब है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।
बिलकुल सही- ऐसा ही है
Umdaa abhivyakti :)
ye sach hai ki yahan sab kuch bikhau hai..
Sundar aur saamyik
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