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Editor "LAUHSTAMBH" Published form NCR.

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Wednesday, June 27, 2012

(155) सभी बेपर्द कर डालो

  शकर कैसे भला छोड़ेगी पीछा , और क्यों छोड़े ,
  तुम्हीं थे जिसने कैथे और जामुन काट डाले हैं  /

 तुम्हीं कहते ज़हर फैला है चारों ओर नफ़रत का ,
 तुम्हीं  ने  आस्तीनों  में , विषैले  नाग  पाले  हैं  /

  लबारों और मक्कारों को , कितनी बार परखोगे ,
  ये तन से खूब उजले हैं , मगर अंदर  से काले हैं /

  वो छत्तीस लाख के सन्डास में , पेशाब करते हैं ,
  यहाँ छब्बीस रुपये रोज की आमद भी लाले हैं  /

  ज़बानें  लपलपाते  भेड़िये  हैं ,  ये  दरिंदे   हैं ,
  ये आदमखोर हैं , मज़लूम ही इनके निवाले हैं /

  उठाओ आँधियाँ , अब और रस्ता भी नहीं कोई ,
  सभी बेपर्द कर डालो , जो शैतानों की चाले हैं  /

                                     - एस . एन . शुक्ल 

Sunday, June 24, 2012

(154) वक्त का मारा समझता है

           वक्त का मारा समझता है


कोई नादां , कोई दाना , कोई प्यारा  समझता है ,
कोई भटका हुआ कहता है , आवारा समझता है  /

मेहरबां वक्त हो जिस पर , वो क्या समझे , वो क्या जाने ,
है  कैसा  वक्त  होता  ,  वक्त  का  मारा  समझता  है  /

नज़र का फेर है , जिस आँख पर जैसा लगा चश्मा  ,
उजाले  को  अंधेरा , चाँद  को  तारा  समझता  है  /

ये आदत  में  नहीं  है , इसलिए  निकले  नहीं  आँसू  ,
मगर कितनी तपिश है , दिल का अंगारा समझता है /

वो कहते हैं , कि  उनको नीद ही आती नहीं शब् भर ,
है मतलब नीद का क्या , यह थका - हारा समझता है /

जिसे होता है मतलब , सिर्फ अपनी खुदपरस्ती से ,
वो हर इन्सान को -  इन्सां नहीं , चारा समझता है  /

मुबारक हो तुम्हें दुनिया तुम्हारी , तंग दिल वालों ,
ये बंजारा तो ,  अपना  ही जहां  सारा समझता है  /

                                     - एस.एन. शुक्ल 

Sunday, June 17, 2012

(153) उगालदान है यारों





 ये ऐसा मुल्क है , हर शख्श जुल्म सहकर भी ,
ज़ुबान   होते   हुए  ,  बेजुबान   है   यारों   /

मस्जिदों , मंदिरों , गिरिजाघरों , गुरुद्वारों में ,
सभी की अपनी , मजहबी दुकान  है यारों  /

आदमी ही यहाँ , बिकता - खरीदा जाता है ,
ये अपने मुल्क का , सियासतान है यारों  /

इतने फिरके , कि इन्हें गिन नहीं सकता कोई ,
और  दावा  ये ,  एकता  की  शान  हैं  यारों  /

भीड़ है , मेले हैं , रेले हैं , रैलियाँ हैं मगर ,
ढूँढता हूँ  ,  कहाँ  हिन्दोस्तान  है  यारों  /

ये सौ करोड़ से ज्यादा हैं , मगर भेड़ों से ,
इसलिए ! हुक्मरान , बेईमान हैं यारों  /

कहीं भी कुछ भी करो , गालियाँ दो , उगलो ज़हर ,
मुल्क  है   या कि  ये  ,  उगालदान  है  यारों  /

                                -एस.एन. शुक्ल
किन्हीं व्यक्तिगत कारणों से लगभग डेढ़ माह तक स्रजन बाधित रहा , पुनः आप मित्रों का स्नेह पाने के लिए उपस्थित हूँ / आशा है हमारे मित्र हमें क्षमा करेंगे /