दिल के जख्मों को तबस्सुम से छुपा लेते हैं /
ज़िंदगी जीते हैं , कैसे भी निभा लेते हैं /
टूटते ख़्वाब , तो होता है दर्द हमको भी ,
हम तो किरचों को भी , पलकों पे उठा लेते हैं /
हम मगर वो भी नहीं , हाँ में हाँ मिलाते रहें ,
हर एक दर पे , जो सिर अपना झुका लेते हैं /
तपिश के डर से , छाँव खोजते होंगे कोई ,
हम तपिश हो भी तो , शोलों को हवा देते हैं /
सरे - कोहसार से , लाते उतार हैं दरिया ,
ठान लें गर , तो समंदर को सुखा देते हैं /
लोग डरते हैं , हवाओं के जोर से , पर हम
आँधियाँ आयें तो , दीवार गिरा देते हैं /
- एस. एन. शुक्ल