था कहा कृष्ण ने कर्म वश्य प्राणी नर जीवन पाता है
निष्काम कर्म का वाक्य स्वंय फिर प्रश्न मात्र रह जाता है
निष्काम भाव से करे कर्म तो लक्ष्य कहाँ रह जायेगा
क्या लक्ष्यहीन मानव जीवन में कभी सफल हो पायेगा?
कामना जब तलक है मन में जीवन गतिमान तभी तक है
जब तक उद्देश्यपूर्ण गति है, जीवन वरदान तभी तक है
उद्देश्यहीन नर इस जग में, पग-पग ठुकराया जायेगा
फिर निरुद्देश्य, निस्पृह, निरीह कैसे कोई रह पायेगा?
गुरु, पिता, सखा, जननी, भगिनी, पत्नी, सुत हो या प्राणी मात्र
किसके प्रति कैसे रखें भाव, कर्तव्य सिखाते हमें शास्त्र
हो धर्म, अर्थ या काम, मोक्ष प्राणी जब उस पथ जायेगा
कामनाहीन रहकर कैसे फिर लक्ष्य वेध कर पायेगा?
उस कंस नाश में जननि, जनक मुक्ति का ध्येय ही छाया था
फिर सगी बुआ के पुत्रों हित कृष्ण ने युद्ध रचवाया था
पूतना, बकासुर वध, कालीदह में भी थे कुछ निहित स्वार्थ
निष्काम कर्मयोगी कैसे फिर कहा कृष्ण को जायेगा?